धार्मिक व आध्यात्मिक सेवाओं के लिए सम्मानित हुए बालशुक पुंडरीक कृष्ण महाराज

श्रीमहंत लाड़िली शरण महाराज के पावन सानिध्य में चल रहे सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में व्यासपीठ से प्रख्यात भागवताचार्य बालशुक पुंडरीक कृष्ण महाराज ने अपनी सरस वाणी में समस्त भक्तों-श्रद्धालुओं को महारास लीला की कथा श्रवण कराई।

धार्मिक व आध्यात्मिक सेवाओं के लिए सम्मानित हुए बालशुक पुंडरीक कृष्ण महाराज

धार्मिक व आध्यात्मिक सेवाओं के लिए सम्मानित हुए बालशुक पुंडरीक कृष्ण महाराज 

वृन्दावन। गोविन्द घाट स्थित अखिल भारतीय निर्मोही बड़ा अखाड़ा (श्रीहित बड़ा रासमण्डल) में श्रीमहंत लाड़िली शरण महाराज के पावन सानिध्य में चल रहे सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह ज्ञान यज्ञ में व्यासपीठ से प्रख्यात भागवताचार्य बालशुक पुंडरीक कृष्ण महाराज ने अपनी सरस वाणी में समस्त भक्तों-श्रद्धालुओं को महारास लीला की कथा श्रवण कराई।


बालशुक पुंडरीक कृष्ण महाराज ने कहा कि गोपी गीत शरद पूर्णिमा की रात्रि को हुई महारास लीला का एक प्रमुख आख्यान है। वस्तुतः भगवान श्रीकृष्ण आत्मा हैं, आत्माकार वृत्ति राधा हैं और शेष आत्माभिमुख वृत्तियां गोपियाँ हैं। भगवान श्रीकृष्ण के समान ही गोपिकाएँ भी परम् रसमयी व सच्चिदानंदमयी थीं। यदि ब्रज गोपिकाएँ गोपी गीत का गायन नही करतीं तो भगवान श्रीकृष्ण महारास नही करते।वस्तुतः गोपी गीत से ही महारास का उद्भव हुआ था। गोपी गीत के ही माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण असंख्य गोपियों के सम्मुख प्रगट हुए और उन्होंने उनके साथ दिव्य महारास लीला की। जिसका वर्णन श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध में 29 से 33वें अध्याय में वर्णित है।महारास लीला को करने से भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम "रासेश्वर श्रीकृष्ण" पड़ा।इस लीला का दर्शन करने के लिए भगवान शिव के अलावा अन्य देवता भी ब्रज में आये थे।


इस अवसर पर अखिल भारत वर्षीय ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता पण्डित बिहारीलाल वशिष्ठ एवं ब्रज साहित्य सेवा मण्डल के अध्यक्ष डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने बालशुक पुंडरीक कृष्ण महाराज का उनके द्वारा की जा रही धार्मिक व आध्यात्मिक सेवाओं के लिए शॉल ओढ़ाकर एवं ठाकुरजी का छवि चित्र भेंट करके सम्मान किया।साथ ही उनकी आध्यात्मिक जीवन यात्रा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि महाराजश्री कृष्ण भक्ति की लहर को समूचे विश्व में पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ प्रवाहित कर रहे हैं।जिससे कि असँख्य व्यक्ति कृष्ण भक्ति को ओर अग्रसर हुए हैं।


महोत्सव के अंतर्गत महारास लीला और श्रीकृष्ण-रुक्मिणी विवाह की अत्यंत मनोहारी झांकी सजाई गई।


इस अवसर पर श्रीमहंत दंपत्ति शरण महाराज (काकाजी), महोत्सव के मुख्य यजमान देवीचंद चांदवानी, श्रीमती कांता चांदवानी, रवि चांदवानी, श्रीमती भाविका चांदवानी (मुम्बई), पण्डित रमाशंकर शास्त्री, युवा साहित्यकार डॉ. राधाकांत शर्मा, जुगल गोस्वामी, रासाचार्य देवेंद्र वशिष्ठ, पण्डित राधावल्लभ वशिष्ठ, आचार्य इंद्रकुमार शर्मा, प्रियावल्लभ वशिष्ठ, लालू शर्मा आदि के अलावा विभिन्न क्षेत्रों के तमाम गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।