पर्वाधिराजदसलक्षण महापर्व दिगम्बर

पर्वाधिराजदसलक्षण महापर्व दिगम्बर जैन धर्म केधर्मावलंबियों द्वारा मनाया जाने वाला पर्व है।जैन धर्म मेंदसलक्षण महापर्व का बहुत महत्व है। इसेपर्यूषणपर्वभीकहाजाताहै।

पर्वाधिराजदसलक्षण महापर्व दिगम्बर

पर्वाधिराजदसलक्षण महापर्व दिगम्बर जैन धर्म केधर्मावलंबियों द्वारा मनाया जाने वाला पर्व है।जैन धर्म मेंदसलक्षण महापर्व का बहुत महत्व है। इसेपर्यूषणपर्वभीकहाजाताहै। दसलक्षणपर्वकीमहत्ताकेकारणदसलक्षणपर्वको ‘पर्वाधिराज’ भीकहाजाताहै, जोपूरीमानवताको ‘जिओऔरजीनेदो’ कासन्देशदेताहै।


इस महापर्व के दौरान जैन मंदिरोंऔर जिनालयोंमें धर्म की प्रभावनाकी जातीहै।प्रतिदिन प्रातः कालतथाशाम कोअनेक स्त्री-पुरुष मंदिरों में जाते हैं और बड़े आनंद के साथ भगवान का पूजन करते हैं।इन दसदिनों के दौरान जैन लोग तत्त्वार्थ सूत्र का पाठ करते हैं। दसलक्षणपर्व का मुख्य उद्देश्य है अपनी आत्मा कोशुद्ध करना,दस गुणोंपर अपना ध्यान केंद्रित करना और गुरुओंकीवाणी का अनुसरणकरना।इस पर्व में दैनिक जीवन में जाने-अनजाने किए गये पापों से मुक्ति पाने का प्रयास किया जाता है ।


इन दस दिनोंके दौरान दिगम्बर जैन धर्म केअनुयायीदससद्गुणोंका पालन करते हैं।ऐसा माना जाता है कि इन दस दिनोंमेंइन दस गुणों का पालन करने से व्यक्ति को अपने स्वरूप का ज्ञात होता है। ये दस उत्तम धर्म हैं,उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच,उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्यएवम्उत्तमब्रहाचर्य।


जैनधर्मानुसार,सालमेंतीनबारदसलक्षणपर्वनिम्नतिथियोंवमाहमेंमनायाजाताहै:
• चैत्रशुक्ल5से 14तक
• भाद्रपदशुक्ल5से 14तक
• माघशुक्ल5से 14तक

तथापि, भाद्रमहीनेमेंआनेवालेदशलक्षणपर्वकोलोगोंद्वाराज्यादाधूमधामसेमनायाजाताहै।ये दस दिन, भाद्र पद शुक्ल पंचमी सेअनन्त चतुर्दशी तक होते हैं। इन दस दिनों के दौरान काफी चीजों का त्याग करते हुएव्यक्ति उस दिन के धर्म को अपनाकरअपनी आत्मा कीशुद्धि कर सकता है।

सभी धर्मोंके नाम से पहले उत्तम शब्द जोड़ा गया है जो ये दर्शाता है कि जैन साधुसर्वोच्च स्तर पर इन सब गुणों  का पालन करते हैं।गृहस्थव्यक्तिभी इन धर्मोंको काफी हद तक अनुकरण करने का प्रयास करतेहैं।

येदसधर्मनिम्नलिखितहैं:
 उत्तम क्षमा धर्म (Supreme Forgiveness)
दूसरों से अपनी गलतियोंके लिएक्षमामांगना तथा दूसरों को उनकी गलती के लिए क्षमा करना ।

 उत्तम मार्दव धर्म (Supreme Modesty)
अपने मन मेंमृदुताएवम्व्यवहारमेंनर्मता रखना।

 उत्तम आर्जव धर्म (Supreme Straightforwardness&Honesty)
अपने भाव में शुद्धत्ता रखना और विचारोंमें ईमानदारी रखना ।

 उत्तम शौच धर्म (Supreme Purity)
अपने शरीर,मस्तिष्क या वाणीमेंकिसी भी प्रकार का लोभ न रखना ।

 उत्तम सत्य धर्म (Supreme Truth)
सदा ही सत्य और हितकारी बोलना ।

 उत्तम संयम धर्म (Supreme Restraint) 
(सुगंध दशमी)
अपने मन, वचन और काया को नियंत्रणमें रखना ।इसदिनकोधूपदशमीकेरूपमेंमनायाजाताहै।इसदिन, लोगभगवानकोधूपचढ़ातेहैंऔरप्रार्थनाकरतेहैंकिउनकाजीवनभीधूपकीतरहसुगंधितहोजाए।इससेवायुमंडलभी अत्यधिकसुगंधमयवस्वच्छहोजाताहै।

 उत्तम तप धर्म(Supreme Austerity)
किसी भी प्रकार के प्रलोभन को तपस्या से अपने वशमेंरखना ।

 उत्तम त्याग धर्म (Supreme Renunciation)
इसका तात्पर्य भौतिकवादी चीजों के त्याग से है।साथ हीकिसी भी पात्र को ज्ञान, आहार,अभय, औषधिअथवाशास्त्र दान देना भीइसकेअन्तर्गतआताहै।

 उत्तम आकिंचन्य धर्म (Supreme Non-Attachment)
किसी भी वस्तु में मोह अथवा ममता न रखना।अभ्यंतर परिग्रह जैसे क्रोध, डरआदि और बाहरियपरिग्रह जैसे धन, जेवरातआदि को निरस्त करना ।

 उत्तम ब्रहाचर्यधर्म(Supreme Celibacy) 
(अनंत चतुर्दशी )
न केवल शारीरिक क्रिया,अपितु किसी भी प्रकार के शारीरिक सुख को न भोगना तथा स्वयं को पवित्र रखना ।दसवेंदिन अनन्त चतुर्दशी (अनन्त चौदस)का पर्व मनाया जाता है।जैनमुनिसर्वदाशरीर, मनऔरवाणीद्वाराइसधर्मकापालनकरतेहैं।इस दिन तीर्थंकरभगवान वासुपुज्य को मोक्ष भी प्राप्तहुआ था।दसलक्षणपर्वकेअंतमें, जैनअनुयायीउपवासएवंनिर्जलाव्रतभीकरतेहैं।अनेकस्थानोंपरइसदिनजलूसभीनिकलताहै।कुछलोगइन्द्रबनाकरजुलूसकेसाथजललातेहैंऔरउसजलसेभगवानकाअभिषेककरतेहैं।

इन दस गुणों का पालन करने के लिए कोई निर्धारित नियमावलीनहीं है और सभी अनुयायीअपनीक्षमता अनुसार इनका पालन कर सकते हैं।

क्षमावाणीदिवस 
इस महापर्व के समापन के उपरांत क्षमावाणीपर्व मनाया जाता है जिसमें सभी लोग एक दूसरे को ‘मिच्छामि दुक्कड़म’कह करक्षमा की प्रार्थना करते हैं।इसमेंसभीव्यक्ति,जाने-अनजानेहोनेवालीगलतियोंकेलिएसभीमनुष्य, जीव-जन्तुओ, पशु-पक्षियोंसेक्षमाप्रार्थना करते हैं।

इन दस दिनों के दौरानजैनअनुयायीव्रतभीरखते हैं। कुछ अनुयायीदस के दस दिन केवल जल ग्रहण करके ही अपना समय व्यतीत करते हैं।हमारे तीर्थंकरों और संतों की तरह इन कठोर साधनाओं का पालन करना हमारे लिए संभव नहीं है, परअधिकांश जैन अनुयायी इन धर्मों का यथासंभव पालन करने का प्रयास करते हैं औरपर्यूषणपवॅकेदसदिनोंकेदौरानउपवास (बिनाखाएबिनापिए)अथवा एकाशन (एकबारखाना-पानी) करतेंहैं।पर्वकेदिनोंमेंहरीसब्जियोंवबाहरकेखानपानकेत्यागकानियमभीकुछअनुयायीलेतेहैं।

येपर्युषणपर्वइन्हींदसधर्मोंकोजीवनमेंअपनानेकाउपयुक्तअवसरहै।ये दस धर्म न केवल जैन धर्म के अनुयायियों के लिए प्रासंगिक है अपितु समस्त विश्व के प्राणियों के लिए अपनी आत्मा की शुद्धि का मार्ग हैं ।

आइयेहमसबमिलकरएकसाथदसलक्षणमहापर्वमनाएं।

दसलक्षणमहापर्वकीजय।

जय जिनेन्द्र,

अतुलजैन(एडवोकेट)

(लेखकएकयुवाअधिवक्ताहै)