आईआईएससी ने मधुमेह से पीड़ित लोगों में पैर की चोटों को रोकने वाले जूते बनाए
बेंगलुरु,। भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के अनुसंधानकर्ताओं ने ‘कर्नाटक इंस्टीट्यूट ऑफ एंडोक्रिनोलॉजी एंड रिसर्च’ (केआईईआर) के साथ मिलकर मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए ऐसे जूते बनाए हैं
बेंगलुरु, भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) में मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के
अनुसंधानकर्ताओं ने ‘कर्नाटक इंस्टीट्यूट ऑफ एंडोक्रिनोलॉजी एंड रिसर्च’ (केआईईआर) के साथ मिलकर मधुमेह से
पीड़ित लोगों के लिए ऐसे जूते बनाए हैं जिससे उनमें पैर की चोटों का खतरा कम हो जाता है।
मधुमेह से पीड़ित लोगों में पैर की चोटें या घाव स्वस्थ लोगों के मुकाबले धीमी गति से ठीक होते हैं, जिससे
संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है
और जटिलताएं भी बढ़ जाती है तथा कुछ मामलों में तो पैर भी काटना पड़ जाता
है।
बेंगलुरु स्थित आईआईएससी ने सोमवार को एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि विशिष्ट रूप से डिजाइन की गयी इन
जूतों का निर्माण आईआईएससी की टीम ने किया है और यह 3डी प्रिंट वाला है
तथा इसे किसी भी व्यक्ति के पंजों
के आकार तथा चलने की शैली के अनुरूप बनाया जा सकता है।
इसमें कहा गया है, ‘‘पारंपरिक चिकित्सीय जूतों के विपरीत इन जूतों में एक ‘स्नैपिंग’ तंत्र पैरों को अच्छी तरह से
संतुलित रखता है, घायल हिस्से को तेजी से ठीक करता है और पैर के अन्य हिस्सों में चोटें लगने से रोकता है।’’
आईआईएससी ने कहा कि ये जूते उन लोगों के लिए खासतौर पर फायदेमंद हैं जिन्हें मधुमेह के कारण तंत्रिका तंत्र
को नुकसान पहुंचा है, जिससे उनके पैर सुन्न हो जाते हैं।
केआईईआर में पैरों की चिकित्सा के विभाग के प्रमुख पवन बेलेहल्ली ने कहा, ‘‘मधुमेह के सबसे लंबे समय तक
पड़ने वाले असर में मधुमेह से तंत्रिका तंत्र को पहुंचने वाला नुकसान है और इसके निदान को अक्सर नजरअंदाज
किया जाता है। पैरों के सुन्न होने से मधुमेह से पीड़ित लोगों के चलने का तरीका अनियमित होता है।’’
उदाहरण के लिए एक स्वस्थ व्यक्ति आमतौर पर जमीन पर पहले अपनी एड़ी,
फिर पंजा और पैर की उंगलियां
रखता है तथा फिर से एड़ी रखता है।
लेकिन पैरों के सुन्न होने के कारण मधुमेह से पीड़ित लोग हमेशा ऐसा नहीं
करते जिससे दबाव असमान रूप से बंट जाता है।