*कि जिसकी मनाही हो*

स्वचालित साधन है। एक बार आग दिखा दो, फिर साठ या सौ के शॉट चलने के बाद ही जान छूटती है।कोरोना, डेंगू, बेरोजगारी और गरीबी त्योहारों की खुशी कम नहीं करते। पटाखों की प्रतियोगिता से आकाश धुआं धुआं हो उठा है। एक दीपावली पर पुलिसकर्मियों ने पटाखा विक्रेता से साहब के लिए पटाखे मांगे। विक्रेता ने उठाकर पांच दस पटाखे दिये तो पुलिसकर्मियों ने ज्यादा और दमदार पटाखे देने को कहा। विक्रेता और भी

*कि जिसकी मनाही हो* 
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 _-राजेश बैरागी-_ 
मैं अभी भी कानफाड़ू पटाखों के शोर की जद में हूं। दोपहर से ही दीपावली प्रेमी पटाखों को जलाने, चलाने और भस्म करने में व्यस्त हैं। आमने सामने के घरों में पटाखे चलाने की होड़ लगी है। कुछ लोग पेटियां खरीद कर ले आए हैं।यह पटाखे चलाने का स्वचालित साधन है। एक बार आग दिखा दो, फिर साठ या सौ के शॉट चलने के बाद ही जान छूटती है।कोरोना, डेंगू, बेरोजगारी और गरीबी त्योहारों की खुशी कम नहीं करते। पटाखों की प्रतियोगिता से आकाश धुआं धुआं हो उठा है। एक दीपावली पर पुलिसकर्मियों ने पटाखा विक्रेता से साहब के लिए पटाखे मांगे। विक्रेता ने उठाकर पांच दस पटाखे दिये तो पुलिसकर्मियों ने ज्यादा और दमदार पटाखे देने को कहा। विक्रेता और भी पुलिसकर्मियों को पटाखे दे देकर परेशान था। उसने झुंझलाकर कहा,- क्या साहब के लिट्टे वाले पटाखे मंगवा कर दूं।' इस वर्ष सरकार और सुप्रीम कोर्ट पर्यावरण बचाने को पटाखे न चलने देने के लिए काफी सख्त थे। इसपर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लेकर हिंदूवादी संगठन और व्हाट्स एपीय मोर्चाबंद लोगों ने नाखुशी भी जताई थी। पुलिस ने दो चार स्थानों पर छापे डाल कर पटाखे पकड़ने की रस्म अदायगी भी की। परंतु फिर भी पटाखे चले और खूब चले। मीडिया रिपोर्टों में अब महानगरों की वायु के खराब स्तर पर पहुंच जाने की खबरें आना शेष है। क्या दीपावली को इसी प्रकार मनाया जा सकता है? फिर मिठाई और प्रकाश को लेकर इतनी हाय तौबा करने की क्या जरूरत है।(नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)