टाटा समूह कितनी जल्द करेगा कायाकल्प एयर इंडिया को

इसके खर्चे बढ़ते चले जा रहे थे और कमाई घट रही थी। इसलिए टाटा ग्रुप को इसे पटरी पर लाने के लिए अब सख्त और त्वरित ठोस प्रयास करने होंगे। इसे बाबूगिरी ने तबाह कर दिया था। टाटा ग्रुप के खरीदने के बाद भी इसकी सर्विस में कोई सुधार नहीं हुआ। यहां के स्टाफ के कामकाज का स्तर और उर्जा को देखकर साफ समझ आ जाता है कि इनमें जंग लग चुकी है

टाटा समूह कितनी जल्द करेगा कायाकल्प एयर इंडिया को

आर.के. सिन्हा

 

एयर इंडिया पर आगामी 27 जनवरी से टाटा ग्रुप का नियंत्रण हो जाएगा। पहले कहा जा रहा था कि टाटा ग्रुप को एयर इंडिया 23 जनवरी को ही सौंप दी जाएगी। अब टाटा ग्रुप के ऊपर यह बड़ी चुनौती होगी कि वो इसे कैसे विश्व स्तरीय एयरलाइंस में तब्दील करे। एयर इंडिया की सर्विस गुजरे दशकों से लगातार बद से बदत्तर हो रही थी। इसके खर्चे बढ़ते चले जा रहे थे और कमाई घट रही थी। इसलिए टाटा ग्रुप को इसे पटरी पर लाने के लिए अब सख्त और त्वरित ठोस प्रयास करने होंगे। इसे बाबूगिरी ने तबाह कर दिया था। टाटा ग्रुप के खरीदने के बाद भी इसकी सर्विस में कोई सुधार नहीं हुआ। यहां के स्टाफ के कामकाज का स्तर और उर्जा को देखकर साफ समझ आ जाता है कि इनमें जंग लग चुकी है। जहां पर नौकरी सुरक्षित होती और पगार का मिलना तय होता है, वहां पर स्वाभाविक रूप से गड़बड़ चालू हो ही जाती है। एयर इंडिया के साथ भी यही हुआ। मुझे बीते कुछ समय के दौरान एयर इंडिया की फ्लाइट से मुंबई, बनारस, पटना, लखनऊ वगैरह आने-जाने का मौका मिला। सब जगहों में हालात बेहद लचर नजर आए। फ्लाइट के दौरान पहले की भांति ही घटिया नाश्ता और भोजन मुसाफिरों को दिया गया।  कहना न होगा कि इन सब कारणों के चलते ही एयर इंडिया को हर साल सैकड़ों करोड़ का घाटा होता रहा I क्योंकि,  मुसाफिरों ने अन्य एयरलाइंसों में जाना शुरू कर दिया। आप जानते हैं कि टाटा ग्रुप कई वर्षों से एयर इंडिया के अधिग्रहण की कोशिश कर रहा था। दरअसल पहले सरकार एयर इंडिया में कुछ हिस्सेदारी बेचना चाह रही थी। लेकिन जब सरकार ने पूरी तरह टाटा समूह में अपनी हिस्सेदारी बेचने का निर्णय लिया तब टाटा ने 18 हजार करोड़ रुपये में एयर इंडिया को खरीद लिया। टाटा समूह के पास विस्तारा और एयर एशिया एयरलाइंस पहले से मौजूद है।

जाहिर है, टाटा ग्रुप के पास एयर इंडिया जान फूंकने की अवश्य ही कोई ठोस कार्य योजना होगी। अगर यह बात न होती तो वह इसे खरीदता ही क्यों। टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमेन और मेनेटर रतन टाटा और चेयरमेन एन.चंद्रशेखर अपने समूह के आला अफसरों के साथ बॉम्बे हाउस में बैठकर अवश्य ही एयर इंडिया को नए सिरे से खड़ा करने के बारे में योजनाएं बना रहे होंगे। बॉम्बे हाउस में टाटा समूह का हेड़ आफिस है। इसमें ही टाटा समूह की नमक से लेकर स्टील क्षेत्र की कंपनियों के सभी प्रमुख बैठते हैं। टाटा समूह के आला अफसरों को समझ लेना होगा कि भले ही टाटा समूह का ब्रॉड भारत और भारत के बाहर बहुत  सम्मान की नजरों से देखा जाता है, पर उसे एयर इंडिया को बेहतरीन एयरलाइंस बनाने के लिए स्टाफ को मोटिवेट करने से लेकर नई टेक्नालॉजी का सहारा लेना होगा। अब एयर इंडिया का सारा इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी(आईटी) संबंधी काम टाटा कंसलटेंसी सर्विसेज (टीसीएस) कर सकती है । टीसीएस दुनिया की सबसे खास आईटी सेक्टर की कंपनियों में शुमार होती है। उसकी तरफ से संसार की कई मशहूर एयरलाइंसों को सेवाएं पहले से ही दी जा रही हैं। टीसीएस का त्रैमासिक मुनाफा 18 हजार करोड़ रुपए से ऊपर आ रहा है। तो आईटी के मोर्चे पर तो एयर इंडिया को टीसीएस की सेवाएं आसानी से मिल जाएंगी। यह तो उसके घर का मामला ही माना जा सकता है। लेकिन कोई भी उद्योग, खासतौर पर सर्विस सेक्टर, तब ही गति पकड़ सकता है जब वहां का स्टाफ भी कमर कस ले। इसके बिना तो बात नहीं बनेगी। एयर इंडिया के ग्राउंड और फ्लाइट के दौरान रहने वाले स्टाफ तो देखकर समझ में आता है कि उसे अपने कस्टमर्स के हितों को लेकर कोई गंभीरता या संवेदनशीलता का भाव नहीं है। वे बस अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं I मुझे खुद देखकर अफसोस हुआ कि टाटा समूह के अधिग्रहण के बाद भी इसके पुरुष मुलाजिम तीन-चार दिनों की बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ काम कर रहे हैं। फ्लाइट के दौरान मुसाफिरों को कायदे से सूचनाएं भी नहीं दी जा रही थीं।  इनके विपरीत निजी एयर लाइनों के स्टाफ में कमाल की उर्जा और उत्साह देखने में आता है। समझ आता है कि वे किसी खास लक्ष्य को हासिल करने के लिए मेहनत कर रहे हैं। एयर इंडिया के पुराने स्टाफ को अब अपने पुराने तौर तरीकों को भी छोड़ना ही होगा। अब वे इस तरह की उम्मीदें पालना छोड़ ही दें कि उनके ऊपर उनसे छोटी उम्र का  कोई अफसर नहीं आएगा। अब मेरिट का दौर है तो वही चलेगा। अब जो अपने को साबित करेगा वह ही पदोन्नति भी हासिल करेगा। एयर इंडिया की हालत इसलिए ही नहीं सुधरी कि वहां पर मेरिट की अनदेखी हुई। एयर इंडिया स्टाफ इस बात के लिए भी तैयार रहे कि उन्हें देश के किसी भी भाग में कभी भी ट्रांसफर किया जा सकता है। पहले तो ये सभी ट्रांसफर होने की हालत में दिल्ली में सांसदों से लेकर मंत्रियों के घर याचक के भाव से खड़े हो जाया करते थे कि इनकी किसी तरह से ट्राँसफर न हो। और, कोई न कोई अफसरशाह, सांसद या मंत्री इनकी मदद कर ही देता है I

फिलहाल यह भी लग रहा है कि टाटा ग्रुप एयर इंडिया का संचालन दिल्ली से ही करेगा। हालांकि उसकी चाहत तो ऐसी थी कि उसे सरकार के साथ इस सौदे की डील में मुंबई का एयर इंडिया हाउस भी मिल जाए। मेरीन ड्राइव पर स्थित एयर इंडिया बिल्डिंग मुंबई की शान है। लेकिन सौदे में सरकार ने एयर इंडिया बिल्डिंग अपने पास ही रखी। टाटा समूह एयर इंडिया को राजधानी के गुरुद्वारा रकाबगंज रोड़ पर स्थित एयरलाइस हाउस से ही संचालित करेगी। यानी इधर ही एयर इंडिया के नए बड़े अफसर बैठेंगे। इन्हें मुंबई से दिशा निर्देश तो मिलेंते ही रहेंगे। देखिए कि भारत में एविएशन सेक्टर लंबी छलांग लगा रहा है। यहां पर सभी स्तरीय सेवाएं देनी वाली एयरलाइसों के लिए मुनाफा कमा कर आगे बढ़ने के पर्याप्त अवसर आगामी कई दशकों तक रहेंगे। भारतीय लंबी दूरी के लिए अब हवाई यात्रा पर ज्यादा भरोसा जता रहे हैं। हवाई यात्रा अब बस और रेल यात्रा पर भारी पड़ने लगी है। देश में तो हवाई यात्रियों की संख्या तेजी से बढ़ ही रही हैविदेश जाने वाले यात्रियों की संख्या में भी भारी इजाफा देखने को मिल रहा है।

अगर बात साल 2019 की करें तो तब 71 हजार  भारतीय रोजाना विदेशों के लिए उड़ान भर रहे थे जो प्रतिदिन बढ़ते ही चले जा रहे हैं । यह साफ प्रमाण है कि उत्तम सेवा देने वाली एयरलाइन आगे तो बढ़ेंगी ही ।

 (लेखक  वरिष्ठ संपादकस्तभकार और पूर्व सांसद हैं)