प्रकृति परिवर्तन और देवी सरस्वती का पर्व है बसंत पंचमी!
धार्मिक मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीवों की रचनाकर सृष्टि को जीवोमय किया। तभी मनुष्य का भी उदभव हुआ।लेकिन अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है
धार्मिक मान्यता है कि सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा जी ने जीवों की
रचनाकर सृष्टि को जीवोमय किया।
तभी मनुष्य का भी उदभव हुआ।लेकिन अपनी सर्जना से वे
संतुष्ट नहीं थे उन्हें लगा कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया हुआ है।
भगवान विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का पृथ्वी पर
जलकण बिखरते ही उसमें कम्पंन होने लगा। तभी एक चतुर्भुजी स्त्री के रूप में अदभुत शक्ति का
प्राकट्य हुआ जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक
एवं माला प्रतिष्ठित थीं।कहते है ब्रह्मा जी ने प्रकट हुई सरस्वती देवी से वीणा बजाने का अनुरोध
किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो
गई। जलधारा में कोलाहल हो गया व हवा चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी
को वाणी की देवी सरस्वती नाम दिया। मां सरस्वती को बागीश्वरी भगवती शारदा वीणावादिनी और
बाग्देवी आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है।
यह देवी विद्या और बुद्धि की प्रदाता हैं संगीत की
उत्पत्ति करने के कारण यह संगीत की देवी भी कहलाती हैं।वही वसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण
ने मां सरस्वती को वरदान दिया था कि उनकी प्रत्येक ब्रह्मांड में माघ शुक्ल पंचमी के दिन विद्या
आरम्भ के शुभ अवसर पर पूजा होगी। श्रीकृष्ण के वर प्रभाव से प्रलयपर्यन्त तक प्रत्येक कल्प में
मनुष्य मनुगण देवता मोक्षकामी वसु योगी सिद्ध नाग गन्धर्व और राक्षस आदि सभी बड़ी भक्ति के
साथ सरस्वती की पूजा करेंगे। पूजा के अवसर पर विद्वानो द्वारा सम्यक् प्रकार से मां सरस्वती का
स्तुति-पाठ होगा। भगवान श्री कृष्ण ने सर्वप्रथम देवी सरस्वती की पूजा की तत्पश्चात ब्रह्मा विष्णु
शिव और इंद्र आदि देवताओं ने मां सरस्वती की आराधना की। तबसे मां सरस्वती सम्पूर्ण प्राणियों
द्वारा सदा पूजित हो रही है।
बसंत पंचमी पर मां सरस्वती को पीले रंग का फूल और फूल अर्पण किए जाते हैं। शुभ मुहूर्त में कई
गई पूजा और साधना का भी महत्व है। यह दिन बसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक माना जाता है।
इसलिए श्रद्धालु गंगा मां के साथ-साथ अन्य पवित्र नदियों में डुबकी लगाने के साथ आराधना भी
करते है।
वहीं इस समय फूलों पर बाहर आ जाती है खेतों में सरसों के फूल चमकने लगते हैं गेहूं की
बालियां भी खिलखिला उठती हैं
। इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने के साथ पतंग और स्वादिष्ट
चावल बनाए जाते हैं। पीला रंग बसंत का प्रतीक है।संगीत के क्षेत्र से जुड़े लोग इस दिन का सालभर
से इंतजार करते हैं। बसंत पंचमी के अवसर पर इस साल दो उत्तम योग बन रहे हैं जिसके कारण पूरे
जिन शुभ कार्य किए जा सकते हैं। खासतौर पर अमृत सिद्धि योग और रवि योग का संयोग इस
दिन को और भी खास बना रहा है। यही नहीं बसंत पंचमी इस बार रेवती नक्षत्र में मनाई जा रही है।
इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनकर सुबह सवेरे मां सरस्वती की अराधना करते हैं।
बसंत पंचमी के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए। कोशिश करनी चाहिए कि सूर्योदय से कम से कम दो
घंटे पहले बिस्तर छोड़ देने चाहिए।बसंत पंचमी के दिन स्नान करके साफ कपड़े पहनने चाहिए। बसंत
पंचमी के दिन मंदिर की सफाई करनी चाहिए। मां सरस्वती को पूजा के दौरान पीली वस्तुएं अर्पित
करनी चाहिए। जैसे पीले चावल बेसन का लड्डू आदि।सरस्वती पूजा में पेन किताब पेसिंल आदि को
जरूर शामिल करना चाहिए और इनकी पूजा करनी चाहिए।बसंत पंचमी के दिन लहसुन प्याज से बनी
चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। महाकवि कालिदास ने ऋतुसंहार नामक काव्य में इसे सर्वप्रिये
चारुतर वसंते कहकर अलंकृत किया है। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने ऋतूनां कुसुमाकराः अर्थात मैं
ऋतुओं में वसंत हूं कहकर वसंत को अपना स्वरुप बताया है। वसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और
रति ने पहली बार मानव ह्रदय में प्रेम और आकर्षण का संचार किया था। इस दिन कामदेव और रति
के पूजन का उद्देश्य दांपत्त्य जीवन को सुखमय बनाना है जबकि सरस्वती पूजन का उद्देश्य जीवन
में अज्ञानरूपी अंधकार को दूर करके ज्ञान का प्रकाश उत्त्पन्न करना है।
बीसंत पंचमी के दिन यथाशक्ति ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः का जाप करें। माँ सरस्वती का बीजमंत्र ऐं है
जिसके उच्चारण मात्र से ही बुद्धि विकसित होती है। इस दिन से ही बच्चों को विद्या अध्ययन
प्रारम्भ करवाना चाहिए। ऐसा करने से बुद्धि कुशाग्र होती है और माँ सरस्वती की कृपा बच्चों के
जीवन में सदैव बनी रहती है।इस साल बसंत पंचमी का शुभारंभ शिव योग में होगा। 25 जनवरी को
शाम 06 बजकर 15 मिनट से लेकर अगले दिन यानी 26 जनवरी को दोपहर 03 बजकर 29 मिनट
तक शिव योग रहेगा। बसंत पंचमी पर शिव योग के समाप्त होते ही सिद्ध योग शुरु हो जाएगा।
सिद्ध योग 26 जनवरी को दोपहर 03 बजकर 29 मिनट से लेकर अगले दिन यानी 27 जनवरी को
दोपहर 01 बजकर 22 मिनट तक रहेगा।बसंत पंचमी पर रवि योग भी बन रहा है।इस दिन शाम 06
बजकर 57 मिनट से अगले दिन सुबह 07 बजकर 12 तक रवि योग रहेगा। माघ शुक्ल पंचमी 25
जनवरी को दोपहर 12 बजकर 34 मिनट से अगले दिन यानी 26 जनवरी को सुबह 10 बजकर 28
मिनट तक रहेगा। बसंत पंचमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग शाम 06 बजकर 57 मिनट से लेकर अगले
दिन सुबह 07 बजकर 12 मिनट तक रहेगा।