बाबा बालकनाथ पर विशेष
आचार्य रोहित राणा
बाबा बालकनाथ पर विशेष
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बाबा बालकनाथ जी हिन्दू आराध्य बाबा जी शिव अवतार हैं, जिनको भारत के कोने कोने में बाबा जी की पूजा आराधना की जाती है और हिमाचल पंजाब हरियाणा और जम्मू वालों के इष्ट देव भी हैं
इसके साथ ही बाबाजी के अनेकों मंदिर विदेशों में भी है साथ ही उत्तर-भारतीय राज्य हिमाचल प्रदेश , पंजाब , दिल्ली में बहुत श्रद्धा से पूजा जाता है,
इनके पूजनीय स्थल को “दयोटसिद्ध” के नाम से जाना जाता है, यह मंदिर हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर जिले के चकमोह गाँव की पहाड़ी के उच्च शिखर में स्थित है। मंदिर में पहाडी के बीच एक प्राकॄतिक गुफा है, ऐसी मान्यता है, कि यही स्थान बाबाजी का तपोस्थली था जहां बाबा जी नहीं रहकर बरसो जन कल्याण हेतु तपस्या की।
मंदिर में बाबाजी की एक मूर्ति स्थित है, भक्तगण बाबाजी की वेदी में “ रोट” चढाते हैं, “ रोट ” को आटे और चीनी/गुड को घी में मिलाकर बनाया जाता है।
बाबा जी की गुफा पहले श्रापित राक्षस की गुफा थी जिस समय बाबाजी शहतलाई से उड़कर उस गुफा में आए थे उस गुफा में तपस्या के लिए प्रवेश करना चाहे तब उस राक्षस से बाबाजी का प्रति द्वंद हुआ वह राक्षस श्रापित था और बाबा जी द्वारा उनको मुक्ति मिली उस राक्षस ने जिद करी कि मैं आपके दरबार पर ही रहूंगा
मैं आपको छोड़कर नहीं जाऊंगा तब बाबा जी ने उनको वरदान दिया कि आप यहां रहोगे और नाहर सिंह के नाम से जाने जाओगे आप राक्षस होकर भी आपकी प्रवृत्ति जो है वह ऐसी नहीं होगी यहां आने वाले भक्तों की मन्नतें जब पूर्ण होंगी तो वह आपके लिए बकरे चढ़ाएंगे लेकिन आप वह बकरे खाएंगे नहीं सूंघने मात्र से ही आपकी आत्मा तृप्त हो जाएगी और इसके साथ ही वह बकरा ही बताएगा कि जो आने वाला भक्त है उसका आना कबूल हुआ या नहीं,
यहाँ पर बाबाजी को बकरा भी चढ़ाया जाता है, जो कि उनके प्रेम का प्रतीक है, यहाँ पर बकरे की बलि नहीं चढ़ाई जाती बल्कि उनका पालन पोषण करा जाता है।
बाबाजी की गुफा में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध है, लेकिन उनके दर्शन के लिए गुफा के बिलकुल सामने एक ऊँचा चबूतरा बनाया गया है, जहाँ से महिलाएँ उनके दूर से दर्शन कर सकती हैं।
मंदिर से करीब छहः कि॰मी॰ आगे एक स्थान “शाहतलाई” स्थित है, ऐसी मान्यता है, कि इसी जगह बाबाजी “ध्यानयोग” किया करते थे।
बाबा बालकनाथ जी की कहानी बाबा बालकनाथ अमर कथा में पढ़ी जा सकती है, ऐसी मान्यता है, कि बाबाजी का जन्म सभी युगों में हुआ जैसे कि सत्य युग,त्रेता युग,द्वापर युग और वर्तमान में कल युग और हर एक युग में उनको अलग-अलग नाम से जाना गया
जैसे “सत युग” में “ स्कन्द ”, “ त्रेता युग” में “ कौल” और “ द्वापर युग” में “महाकौल” के नाम से जाने गये। अपने हर अवतार में उन्होंने गरीबों एवं निस्सहायों की सहायता करके उनके दुख दर्द और तकलीफों का नाश किया। हर एक जन्म में यह शिव के बड़े भक्त कहलाए चुकी बाबा खुद साक्षात महादेव के अवतार हैं।
द्वापर युग में, ”महाकौल” जिस समय “कैलाश पर्वत” जा रहे थे, जाते हुए रास्ते में उनकी मुलाकात एक वृद्ध स्त्री से हुई, उसने बाबा जी से गन्तव्य में जाने का अभिप्राय पूछा, वृद्ध स्त्री को जब बाबाजी की इच्छा का पता चला कि वह भगवान शिव से मिलने जा रहे हैं तो उसने उन्हें मानसरोवर नदी के किनारे तपस्या करने की सलाह दी और माता पार्वती, (जो कि मानसरोवर नदी में अक्सर स्नान के लिए आया करती थीं) से उन तक पहुँचने का उपाय पूछने के लिए कहा।
बाबाजी ने बिलकुल वैसा ही किया और अपने उद्देश्य, भगवान शिव से मिलने में सफल हुए। बालयोगी महाकौल को देखकर शिवजी बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बाबाजी को कलयुग तक भक्तों के बीच सिद्ध प्रतीक के तौर से पूजे जाने का आशिर्वाद प्रदान किया और चिर आयु तक उनकी छवि को बालक की छवि के तौर पर बने रहने का भी आशिर्वाद दिया।
कलयुग में बाबा बालकनाथ जी ने गुजरात, काठियाबाद में “देव” के नाम से जन्म लिया। उनकी माता का नाम लक्ष्मी और पिता का नाम वैष्णो वैश था, बचपन से ही बाबाजी ‘आध्यात्म’ में लीन रहते थे।
यह देखकर उनके माता पिता ने उनका विवाह करने का निश्चय किया, परन्तु बाबाजी उनके प्रस्ताव को अस्विकार करके और घर परिवार को छोड़ कर ‘ परम सिद्धी ’ की राह पर निकल पड़े। और एक दिन जूनागढ़ की गिरनार पहाडी में उनका सामना “स्वामी दत्तात्रेय” से हुआ और यहीं पर बाबाजी ने स्वामी दत्तात्रेय से “ सिद्ध” की बुनियादी शिक्षा ग्रहण करी और “सिद्ध” बने। तभी से उन्हें “ बाबा बालकनाथ जी” कहा जाने लगा।
बाबाजी के दो पृथ्क साक्ष्य अभी भी उप्लब्ध हैं जो कि उनकी उपस्थिति के अभी भी प्रमाण हैं जिन में से एक है “ गरुन का पेड़” यह पेड़ अभी भी शाहतलाई में मौजूद है, इसी पेड़ के नीचे बाबाजी तपस्या किया करते थे। दूसरा प्रमाण एक पुराना पोलिस स्टेशन है, जो कि “बड़सर” में स्थित है जहाँ पर उन गायों को रखा गया था जिन्होंने सभी खेतों की फसल खराब कर दी थी,
जिसकी कहानी इस तरह से है कि, एक महिला जिसका नाम ’ रत्नो ’ था, ने बाबाजी को अपनी गायों की रखवाली के लिए रखा था जिसके बदले में रत्नो बाबाजी को रोटी और लस्सी खाने को देती थी, ऐसी मान्यता है कि बाबाजी अपनी तपस्या में इतने लीन रहते थे कि रत्नो द्वारा दी गयी रोटी और लस्सी खाना याद ही नहीं रहता था।
एक बार जब रत्नो बाबाजी की आलोचना कर रही थी कि वह गायों का ठीक से ख्याल नहीं रखते जबकि रत्नो बाबाजी के खाने पीने का खूब ध्यान रखतीं हैं।
मां रत्नो का इतना ही कहना था कि बाबाजी ने पेड़ के तने से रोटी और ज़मीन से लस्सी को उत्त्पन्न कर दिया। बाबाजी ने सारी उम्र ब्रह्मचर्य का पालन किया और इसी बात को ध्यान में रखते हुए उनकी महिला भक्त ‘गर्भगुफा’ में प्रवेश नहीं करती जो कि प्राकृतिक गुफा में स्थित है जहाँ पर बाबाजी तपस्या करते हुए अंतर्ध्यान हो गए थे।
बाबा बालक नाथ सिद्ध पीठ सेक्टर 62 नोएडा में रविवार यह कार्यक्रम का आयोजन हर सप्ताह की बातें इस सप्ताह भी धूमधाम से किया जाएगा जिसमें पूज्य गुरुदेव श्री धीरज महाराज बाबा की महिमा का गुणगान करेंगे और भक्तों को आशीर्वाद प्रदान करेंगे जिसमें भव्य भंडारे का भी आयोजन किया जाएगा
बाबा बालक नाथ सिद्ध पीठ सेक्टर 62 के पीठाधीश्वर परम पूज्य गुरुदेव श्री धीरज महाराज के मार्गदर्शन में लिखा गया है
मनोज वत्स संपादक आज का मुद्दा!