ज्ञान प्रधान संत और विद्या प्रधान ब्राह्मण ही देश व समाज के निर्माता होते हैं : महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज
पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज (हरिद्वार) अपनी धार्मिक यात्रा पर इन दिनों श्रीधाम वृन्दावन आए हुए हैं।
ज्ञान प्रधान संत और विद्या प्रधान ब्राह्मण ही देश व समाज के निर्माता होते हैं : महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज
डॉ. गोपाल चतुर्वेदी
वृन्दावन।रतन छतरी-कालीदह रोड़ स्थित गीता विज्ञान कुटीर में वेदांत उपदेशक, श्रीमद्भगवद गीता को प्रकांड विद्वान, 111 वर्षीय वयोवृद्ध व प्रख्यात संत गीता विज्ञान पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज (हरिद्वार) अपनी धार्मिक यात्रा पर इन दिनों श्रीधाम वृन्दावन आए हुए हैं।उन्होंने यहां के कई प्रख्यात संतों, धर्माचार्यों व प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मुलाकात कर धर्म- अध्यात्म व अन्य विषयों पर विचार-मंथन किया।
महामंडलेश्वर स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि संत और ब्राह्मण देश व समाज के निर्माता और मार्ग दर्शक होते हैं।परंतु इनकी पहचान कैसे की जाय?जिसमें समता विद्यमान हो वही संत हैं। ज्ञान प्रधान ही सच्चे संत होते हैं और विद्या प्रधान ब्राह्मण होते हैं, जो प्रत्येक जीव में ब्रह्म का दर्शन करे, वही सच्चे ब्राह्मण हैं।उन्होंने कहा कि निष्कामता परमार्थ के सभी साधनों की जननी है।अत: हम सभी को अपने कार्य निष्काम भाव से करने चाहिए।साथ ही जगत से समता व परमात्मा से ममता रखनी चाहिए।संसार व शरीर को अपना मानना सभी पापों का मूल है।अत: संसार के सभी प्राणियों की सेवा, ईश्वर से प्रेम तथा स्वयं को त्याग करना चाहिए।साथ ही हम सभी को संयम, सेवा, सुमिरन और सादगी का पंचामृत सदैव पान करते रहना चाहिए।
कार्यक्रम के अंर्तगत ब्रज सेवा संस्थान के अध्यक्ष डॉ. गोपाल चतुर्वेदी ने स्वामी विज्ञानानंद सरस्वती महाराज को ठाकुरजी का प्रसादी पटुका ओढ़ाकर सम्मानित किया।साथ ही उन्होंने पूज्य महाराजश्री और उनके द्वारा संचालित विभिन्न सेवा प्रकल्पों की जानकारी दी।साथ ही यह बताया कि महाराजश्री अपनी 111 वर्ष की आयु में भी समूचे विश्व में श्रीमद्भगवद्गीता का सघन प्रचार-प्रसार कर असंख्य व्यक्तियों को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
इस अवसर पर स्वामी हरिकेश्वर ब्रह्मचारी महाराज, सोहन लाल शर्मा (चंडीगढ़), स्वामी लोकेशानंद महाराज, डॉ. राधाकांत शर्मा, स्वामी परमेश्वर दास महाराज, आशीष सेवक, संस्कृत विद्यालय के छात्र ओम, संगम एवं विवेक आदि की उपस्थिति विशेष रही।