महिलाओं में वेरिकोज अल्सर का खतरा ज्यादा
कई क्षेत्रों में आधुनिक लाइफ स्टाइल के बढ़ते दखल ने कई ऐसे रोगों नें इजाफा किया है जिनका पहले कभी हमने नाम तक नहीं सुना था। ऐसी ही एक बीमारी का ना है वेरिकोज वेन।
कई क्षेत्रों में आधुनिक लाइफ स्टाइल के बढ़ते दखल ने कई ऐसे रोगों नें इजाफा किया है जिनका
पहले कभी हमने नाम तक नहीं सुना था। ऐसी ही एक बीमारी का ना है वेरिकोज वेन। इस बीमारी
में पैरों की नसें मोटी हो जाती है। यदि वेरिकोज वेन का समय पर इलाज नहीं कराया जाए तो वह
वेरिकोज अल्सर में बदल जाता है
जो सीधे तौर पर निष्क्रिय लाइफ स्टाइल का दुष्परिणाम है। एक
अनुमान के मुताबिक, भारत की लगभग 7 से 9 प्रतिशत आबादी वेरिकोज वेन से पीड़ित है। इस रोग
से पीड़ित महिलाओं की तादाद पुरुषों के मुकाबले चार गुना ज्यादा है। कम उम्र की ऐसी युवतियों में
भी वेरिकोज वेन पनपने का खतरा बढ़ने लगा है
जो तंग जीन्स और ऊंची एडियों वाली जूतियां
पहनती हैं।
नई दिल्ली के वसंत कुंज स्थित फोर्टिस हास्पिटल के वरिष्ठ इंटरवेंशनल रेडियोलोजिस्ट डा.प्रदीप मुले
के का कहना है कि वेरिकोज वेन दोनों टांगों में हो सकता है जहां कई सारे वॉल्व होते हैं और जिनसे
हृदय तक रक्त प्रवाह में मदद मिलती है। जब ये वॉल्व क्षतिग्रस्त हो जाते हैं तो टांगों में रक्त जमा
होने लगता है जिस वजह से सूजन, दर्द, थकान, बदरंग त्वचा, खुजलाहट और वेरिकोसिटी (नसों में
सूजन) जैसी समस्या होती है। यदि समय पर इलाज नहीं कराया जाए तो टांग में असाध्य अल्सर भी
विकसित हो सकता है जो सिर्फ एड़ी के पास ही होता है।
डॉ.प्रदीप मुले का कहना है कि वेरिकोज अल्सर के कारकों में मोटापा, व्यायाम का अभाव, गर्भधारण
के दौरान नसों पर असामान्य दबाव, बेतरतीन लाइफ स्टाइल, लंबे समय तक खड़े रहना तथा अधिक
देर तक टांग लटकाकर बैठना शामिल है। आजकल कंप्यूटर प्रोफेशनल, रिसेप्शनिस्ट, सिक्योरिटी गार्ड,
ट्रैफिक पुलिस, दुकानों तथा डिपार्टमेंटल स्टोर्स में काउंटर पर कार्यरत सेल्समैन
, लगातार डेस्क जॉब
करने वाले लोगों में वेरिकोज अल्सर के मामले सबसे ज्यादा पाए जाते हैं।
महिलाओं के कुछ खास हार्मोन के कारण पैरों की नसों की दीवारें फूल जाती हैं। इसके अलावा
गर्भधारण के दौरान टांगों की नसों पर बहुत ज्यादा दबाव पडने के कारण ये नसें कमजोर और सूज
जाती हैं। डॉप्लर परीक्षण द्वारा सामान्य जांच और अल्ट्रासाउंड कराने से क्षतिग्रस्त वॉल्व और सूजी
हुई नसों के रूप में इस रोग का सटीक स्थान देखा जा सकता है। अभी तक वेरिकोज अल्सर के
इलाज के लिए उपलब्ध उपचार विकल्पों में लेटने या बैठने के दौरान टांग ऊपर उठाकर रखना, कभी-
कभी टांगों को मोडकर रखना और मामूली रोग के लिए स्क्लेरोथैरेपी शामिल हैं। रोग बहुत ज्यादा बढ़
जाने पर वेन स्ट्रिपिंग जैसी बड़ी सर्जरी करानी पड़ती है
जिस वजह से टांगों में भद्दा निशान पड़
जाता है और रिकवरी में भी ज्यादा वक्त लगता है।
आजकल मल्टी-पोलर आरएफ ए मशीन का इस्तेमाल करते हुए इस रोग के इलाज में रेडियो फ्रिक्वेंसी
एब्लेशन (आरएफए) सबसे आधुनिक और प्रभावी पद्धति है। डॉ.प्रदीप मुले के अनुसार कलर-डोप्लर
अल्ट्रासाउंड विजन के जरिये असामान्य नसों में एक रेडियोफ्रि क्वेंसी कैथेटर पिरोया जाता है और
रक्त नलिका का इलाज रेडियो-एनर्जी से किया जाता है जिस कारण इसके साथ जुड़ी नसों पर प्रभाव
पड़ता है। इंटरवेंशनल रेडियोलॉजिस्ट असामान्य नस में एक छोटा कैन्युला प्रवेश कराते हुए एड़ी के
ठीक ऊपर या घुटने के नीचे असामान्य सैफेनस नस तक पहुंच बनाते हैं। एब्लेशन के लिए एक पतले
और लचीले ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है जिसे कैथेटर कहा जाता है। कैथेटर की नोक पर छोटा-
सा इलेक्ट्रोड लगा होता है जो मोटी नसों को क्षतिग्रस्त कर देता है।
परंपरागत सर्जिकल उपचार के उलट इस पद्धति में न तो जनरल एनेस्थेसिया, न त्वचा पर सर्जिकल
कट के निशान और न ही रक्तस्राव या रक्त चढ़ाने की जरूरत रहती है और इसमें बहुत तेज रिकवरी
होती है। आम तौर पर इस रोग के अल्सर बनने में कई वर्ष लग जाते हैं इसलिए अल्सर को भरने में
बहुत ज्यादा समय लगने पर भी कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. हालांकि ज्यादातर अल्सर 3-4
महीने में भर जाते हैं लेकिन कुछेक अल्सर को ठीक होने में पर्याप्त समय लग सकता है। लेकिन
अल्सर ठीक हो जाने का मतलब यह नहीं है कि यह समस्या खत्म हो गई है। भले ही ऊपरी त्वचा
दुरुस्त हो जाए, लेकिन नसों के अंदर की समस्या बनी रहती है और आपको अल्सर की पुनरावृत्ति से
बचने के लिए सावधानियां बरतनी होंगी।
कुछ गंभीर मामलों में आपको दिनभर हमेशा कंप्रेशन स्टॉकिंग या पट्टी लगाकर रहना पड़ सकता है,
जहां तक संभव हो पैरों को ऊपर रखना होगा और त्वचा की शुष्कता दूर करने के लिए ज्यादा से
ज्यादा मॉश्चुराइजिंग क्रीम का इस्तेमाल करते हुए त्वचा को अच्छी स्थिति में रखना होगा। वजन में
कमी, ताजा फल का सेवन, व्यायाम करना और धूम्रपान से दूर रहना भी अल्सर को भरने में कारगर
होता है। डॉ.प्रदीप मुले के अनुसार आज यूटेरिन फाइब्रोइड्स, यूटेरिन एडेनोमायोसिस, अन-ऑपरेबल
लीवर ट्यूमर, लीवर एब्सेसस,
अवरुद्ध फेलोपियन ट्यूब खुलने, ब्रेन एन्यूरिज्म और फेफड़ों तथा पेट
से रक्त की उल्टी जैसी कई बीमारियों के इलाज इंटरवेंशनल रेडियोलोजिस्ट के द्वारा किया जा
सकता है।