हिजाब जरुरी है या किताब!

हिजाब अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ आड़, ओट या अवरोध है। ये दो जेंडर के बीच अवरोध के लिए उपयोग किया गया है ताकि एक जेंडर दूसरे के सामने ऐसे न आए की उसे किसी तरह का नुकसान पहुंचे।

हिजाब अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ आड़, ओट या अवरोध है। ये दो जेंडर के बीच अवरोध के लिए उपयोग
किया गया है ताकि एक जेंडर दूसरे के सामने ऐसे न आए की उसे किसी तरह का नुकसान पहुंचे।

जैसे अगर ट्रेन
में महिलाओं के लिए एक अलग कोच लगाया जाता है तो वो हिजाब है। उसका आशय किसी कपड़े से नहीं है जैसा
की मुझे एक इस्लामिक विशेषज्ञ से पता चला।

मॉर्डन अर्थ पर जाएं तो कुछ मुस्लिम महिलाएं सर ढकने के लिए
जो कपड़ा पहनती हैं उसे हिज़ाब कहा जाता है।

वैसे इतिहासकारों की माने तो फ़िलहाल जिस हिज़ाब पर बहस छिड़ी
है उसका प्रचलन साउथ ईस्ट एशिया से आया है जो कि लगभग तीन- चार दशक पहले ही शुरू हुआ क्यूंकि वहां
इसी दौरान सबसे अधिक मुस्लिम धर्म का प्रसार हुआ है।

मलेशिया और इंडोनेशिया में महिलाओं ने इसका उपयोग
अपनी सुविधा के लिए शुरू किया ताकि उन्हें बुर्क़ा या चादर न पहनना पड़े उसके बाद ये पूरी दुनिया में लोकप्रिय
हो गया क्यूंकि इसे धारण करना सुविधा पूर्ण था।


हिजाब वर्तमान में बहुत चर्चा में है क्योंकि पिछले दिनों कर्नाटक के उडुपी का एक वीडियो वायरल हुआ जिसके बाद
पूरे भारत में एक नया विवाद शुरू हो गया।

वैसे गौरतलब है की ये मामला अभी का नहीं है बल्कि दिसंबर से चल
रहा है जब कर्नाटक के एक कॉलेज ने परिसर में (जैसे कि हर स्कूल कॉलेज में होता है) में तो छात्राओं को हिजाब
पहनने की अनुमति दी मगर कक्षा में पढ़ाई करने की अनुमति नहीं दी।

21 दिसंबर से छात्राओं ने ये मांग उठाई
कि उन्हें कक्षा में हिजाब पहनना है और कॉलेज प्रशासन से अनुमति नहीं मिलने पर धरने पर बैठ गई।

वहीं इस
पर कॉलेज प्रशासन का कहना है कि जो लड़कियां विरोध कर रहीं हैं वो दरअसल सिमी से जुड़े छात्र संगठन कैंपस
फ्रंट ऑफ़ इंडिया से जुड़ी हैं। जिस पर सरकार बैन लगाने की तैयारी में है।

उसके बाद कुछ दिनों पहले मामले ने
मजहबी रंग ले लिया।


ये तो हुई विवाद की बात जिसे हमने समझा मगर वर्तमान भारत में जहां हम लिंग भेद का विरोध करते हैं और
समानता के अधिकार के लिए लड़ाई रहे हैं वहां क्या वाकई इस तरह के विवाद के कोई मायने हैं।

भारत वो देश है
जहां एक राष्ट्र एक कानून पर विचार किया जा रहा है। हम सब अपने राष्ट्र को विकसित करने का और तरक्की

का सपना देखते हैं तो फिर गमछा या हिजाब पर विवाद क्यों। अगर संविधान में सबको बराबरी का अधिकार दिए
जाने की बात कही गयी है तो हम फिर क्यूँ एक दूसरे से अलग दिखाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। जबकि लड़ाई होनी
चाहिए आगे बढ़ने की न कि खुद को पीछे खींचने की। सालों से फेमनिस्ट लड़ाई लड़ते आएं हैं तब जाकर महिलाओं
को बराबरी की सैलरी मिलने पर बात होने लगी है।
महिलाएं चाहे किसी भी धर्म की हो उन्हें अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा और खुद को पितृ सत्तात्मक के दबाव
से मुक्त करके खुद को स्थापित करना होगा। साथ ही ये भी देखना होगा की कहीं ध्रुवीकरण करने के लिए उन्हें
वरगलाया तो नहीं जा रहा। बात चाहे घुंघट की हो या हिजाब की तरक्की के रास्ते में आएं और अलग करने के
लिए उपयोग किए जाएं तो दोनों ही गलत है। रही विद्यालय और कॉलेज की बात तो वहां तब सभी बच्चों से
सामान व्यवहार हो पाएगा जब सभी एक सामान दिखाई दें। यही कारण है कि यूनिफार्म बनाई गई है ताकि हमारी
गंगा यमुनी तहज़ीब वाले देश में किसी के साथ भेदभाव न हो और अमीरी,गरीबी या भाषा व मजहब के आधार पर
किसी को अलग न महसूस हो। आज यदि विवाद के कारण सरकार को स्कूल बंद करने पड़े हैं तो इसमें नुकसान
छात्रों का ही है।अगर हम सब सिर्फ भारत की तरक्की का विचार लेकर आगे बढ़े तो इस तरह के विवाद जो हमें
आपस में अलग करते हैं कभी पनप ही नहीं पाएंगे।