चीन की अपेक्षा भारत को प्राथमिकता देता विश्व समुदाय
जी - 20 के सफल आयोजन के पश्चात भारतवर्ष की वैश्विक मंचों पर पकड़ और मजबूत हुई है। जो देश वैश्विक मंचों को अभी तक कब्जाए बैठे थे और भारत को अधिक प्राथमिकता नहीं देते थे अब वह भी सोचने के लिए बाध्य हो गए हैं
जी - 20 के सफल आयोजन के पश्चात भारतवर्ष की वैश्विक मंचों पर पकड़ और मजबूत हुई है। जो देश वैश्विक मंचों को अभी तक कब्जाए बैठे थे और भारत को अधिक प्राथमिकता नहीं देते थे अब वह भी सोचने के लिए बाध्य हो गए हैं कि बदलते समय और बदलती परिस्थितियों में भारत को अब एक वैश्विक शक्ति की मान्यता देनी ही पड़ेगी। जी 20 के आयोजन के समय भारत ने जिस प्रकार अपने गौरवपूर्ण अतीत को प्रधानमंत्री श्री मोदी के माध्यम से सफल प्रस्तुति दी है, उसे सभी आगंतुक विश्व नेता अभिभूत होकर रह गए। निश्चित रूप से इस प्रकार की गौरवपूर्ण प्रस्तुति से चीन और पाकिस्तान जैसे भारत के परंपरागत शत्रुओं को मिर्ची लगी है।
भारत की इस सफलता पर विदेशों में भी अनेक लेख लिखे गए हैं। वॉशिंगटन में रहने वाले स्तंभकार एस कैसर शरीफ ने द न्यूज़ में इसी से संबंधित एक लेख में लिखा है कि ''जी-20 के कार्यक्रम को इस तरह से डिज़ाइन किया गया कि चीन के वन बेल्ट वन रोड को भी चुनौती दी जा सके। खाड़ी देशों, सऊदी अरब, इसराइल के साथ भारत और यूरोप के बीच प्रस्तावित एनर्जी और ट्रांसपोर्ट लिंक पहली नज़र में चीन के बनाए प्रोजेक्टस को चुनौती देता हुआ प्रतीत होता है।''
यदि वर्तमान परिस्थितियों पर विचार किया जाए तो साम्राज्यवादी नीतियों के साथ-साथ लोगों को कष्ट पहुंचा कर उनका दोहन करने की चीन की नीतियों से इस समय अमेरिका और ब्रिटेन तक भी कष्ट अनुभव कर रहे हैं। चीन की इस प्रकार की नीतियों के चलते ही कोरोना जैसे संकट से विश्व को जूझना पड़ा है। इसके अतिरिक्त चीन की नीतियों से यह स्पष्ट होता है कि वह किसी के लिए भी वफादार मित्र नहीं हो सकता। वह केवल और केवल अपने हितों के बारे में सोचता है और मानवता नाम की चीज उसके चिंतन और नीतियों में कहीं पर भी स्थान प्राप्त नहीं कर पाती। जबकि भारत अपनी नीतियों को बनाते समय मानवता पर अधिक विचार करता है। भारत की इस प्रकार की मानवतावादी सोच ने भारत को नए विश्व का नेता बनने में विशेष योगदान दिया है।
भारत ने प्रधानमंत्री नेहरू के शासनकाल से ही विश्व शांति की पैरोकारी की है। यद्यपि नेहरू की शांति प्रिया नीतियों और वर्तमान भारत की नीतियों में जमीन आसमान का अंतर है। नेहरू कभी भी इस्लामिक सांप्रदायिकता का विश्व मंचों पर खुलकर विरोध नहीं कर पाए। यदि वह उस समय मुस्लिम सांप्रदायिकता का विरोध करते तो संसार को आज इस्लामिक आतंकवाद का सामना नहीं करना पड़ता। इसके विपरीत आज का भारत विश्व मंचों पर विश्वव्यापी इस्लामिक आतंकवाद का खुलकर विरोध कर रहा है। इतना ही नहीं अपने इस अभियान में भारत ने इस्लामिक देशों का समर्थन प्राप्त करने में भी प्रशंसनीय सफलता प्राप्त की है। इन सारी परिस्थितियों को अमेरिका, रूस, फ्रांस और ब्रिटेन जैसी शक्तियां भी देख रही हैं। अपनी इस नई सकारात्मक और सक्षम भूमिका के कारण भारत इन वैश्विक शक्तियों को चीन की अपेक्षा कहीं अधिक विश्वसनीय, मजबूत और विश्व शांति का पक्षधर देश दिखाई देता है।
उपरोक्त लेखक शरीफ़ के अनुसार, चीन के बेल्ट एंड रोड कार्यक्रम को अब तक मिली जुली प्रतिक्रियाएं मिली हैं। ऐसे में हाल ही में जिस एनर्जी और ट्रांसपोर्ट लिंक की घोषणा हुई है, वह किस प्रकार की वास्तविकता का रूप लेगी ये समझने के लिए अभी कुछ और वर्षों की प्रतीक्षा करनी पड़ सकती है।'
वे कहते हैं, ''निष्कर्ष में आप कह सकते हैं कि मोदी के नेतृत्व में वैश्विक रिश्तों में फेरबदल करने में भारत सफल रहा है। अलोकतांत्रिक गतिविधियों से जुड़ी आलोचनाओं को नज़रअंदाज़ करते हुए मोदी ने ख़ुद को और देश को विश्व पटल पर बेहतर स्थान पर पहुंचाया है।'
यह बात बहुत विचारणीय है कि कई मुस्लिम देश इस समय भारत के साथ निकटता क्यों बढ़ा रहे हैं और पाकिस्तान से दूरी बनाए रखने के लिए क्यों उत्सुक दिखाई देते हैं ? यदि इस बात पर विचार किया जाए तो कारण साफ हो जाता है कि इस्लाम के नाम पर दुनिया में फैले आतंकवाद से मुस्लिम देशों के लोग भी दुखी हो चुके हैं। उन्हें दुनिया का इस्लामीकरण हो या ना हो पर अब शांति की तलाश अवश्य हो गई है। भारत को वह विश्व शांति के दूत के रूप में देख रहे हैं। जबकि पाकिस्तान के बारे में उनकी पक्की धारणा बन चुकी है कि यह देश इस्लाम को बर्बाद करने का ठेका ले चुका है। बर्बादी के इस ठेके में उन्हें पाकिस्तान का अपना विनाश होना भी निश्चित दिखाई दे रहा है।
इस्लाम को मानने वाले लोग भी अंततः शांति की उसी विचारधारा को मानव समाज की उन्नति के लिए आवश्यक मानते हैं, जिसमें किसी भी प्रकार के आतंकवाद के लिए कोई स्थान ना हो। अनेक देश ऐसे हैं जिनको मुस्लिम देश के रूप में जाना जाता है , पर वहां आंतरिक कलह और कटुता इतनी अधिक है कि उनका घरेलू परिवेश भी जहर से भरा हुआ है। इस प्रकार के घरेलू परिवेश को समाप्त करने में मुस्लिम समाज के कई लोग भारत की योग की परंपरा को बहुत अधिक उपयोगी पा रहे हैं। लोगों ने योग को अपना कर रोग को भगाया है। योग से जुड़कर लोगों की सच में भी सकारात्मक परिवर्तन आया है।इस प्रकार की मानवीय सोच में विश्वास रखने वाले मुस्लिम लोगों का अपनी अपनी सरकारों पर भी यह दबाव बन रहा है कि वह अब भारत की शांतिप्रिय नीतियों का समर्थन कर पाकिस्तान से कन्नी काटें। सऊदी अरब और यू0ए0ई0 भारत के साथ मिलकर काम करने में प्रसन्नता का अनुभव कर रहे हैं।
पाकिस्तानी पत्रकार रऊफ़ कलासरा इस बात से चिंतित हैं कि सऊदी अरब और यू0ए0ई0 पाकिस्तान के बदले भारत को प्राथमिकता दे रहे हैं। कलासरा ने एक वीडियो टिप्पणी में कहा, ''सऊदी अरब और यूएई अब इंडिया को ज़्यादा सुरक्षित और भरोसेमंद समझते हैं। पाकिस्तानी इस बात से हैरान रहते हैं सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस को पाकिस्तान आना था लेकिन नहीं आए। भारत दुनिया का सबसे बड़ा मार्केट है। इंडिया सऊदी अरब से कैश पर तेल लेता न कि हमारी तरह बार-बार उधार मांगने जाता है।''
कलासरा का यह भी कहना है कि, ''भारत सऊदी अरब को अरबों डॉलर का करोबार दे रहा है। पाकिस्तान में जो भी नई सरकार आती है, सऊदी अरब से पैसा मांगने जाती है। सऊदी अरब और यू0ए0ई0 इस बात को समझते हैं कि तेल एनर्जी के रूप में रिप्लेस हो रही है। सऊदी अरब को पता है कि तेल से बहुत दिनों तक उसकी अर्थव्यवस्था नहीं चलेगी। ऐसे में सऊदी अरब भविष्य के लिए काम कर रहा है और इसमें भारत मददगार साबित हो रहा है।'
शायद कलासरा जैसे लोग यह भूल जाते हैं कि भारत के सांस्कृतिक मूल्य उसे आज भी विश्व में अलग और सबसे बेहतर बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। भारत को भारत के रूप में समझने की आवश्यकता है। आज भारत यदि अपने 'इंडिया' के आवरण को छोड़कर 'भारत' के स्वरूप को अपना कर विश्व के समक्ष अपने आप को प्रस्तुत कर रहा है तो बस यही वह कारण है जो भारत को सबसे अलग सबसे न्यारा और सबसे प्यारा बना देता है। हम जितना ही अपने वास्तविक स्वरूप को समझेंगे, उतना ही अधिक विश्व गुरु के आसन के निकट पहुंचते जाएंगे।