‘ओम-अल्लाह’ का धर्मयुद्ध

ओम और अल्लाह एक ही हैं। मनु और आदम भी एक ही हैं। मनु की संतानें ‘मनुष्य’ कही गईं और आदम की औलाद को ‘आदमी’ कहा गया। अल्लाह ने आदम को भारत की ज़मीं पर भेजा, लिहाजा भारत मुसलमानों का पहला वतन है

‘ओम-अल्लाह’ का धर्मयुद्ध

ओम और अल्लाह एक ही हैं। मनु और आदम भी एक ही हैं। मनु की संतानें ‘मनुष्य’ कही गईं और
आदम की औलाद को ‘आदमी’ कहा गया।

अल्लाह ने आदम को भारत की ज़मीं पर भेजा, लिहाजा
भारत मुसलमानों का पहला वतन है और इस्लाम सबसे पुराना मज़हब है। जिसे हम ‘अल्लाह’ मानते


हैं, वह ही हिंदुओं में ‘ईश्वर’ है, फारसी में उसे ही ‘ख़ुदा’ कहते हैं और ईसाई ‘गॉड’ मानते हैं। जब
मनु धरती पर आए, तब ब्रह्मा नहीं थे, विष्णु और शिव भी नहीं थे, श्रीराम भी नहीं थे, तो मनु


किसकी पूजा करते थे? किसी धर्मगुरु ने बताया कि मनु ‘ओम’ को पूजते थे। फिर सवाल उठा कि
‘ओम’ क्या था? किसी धर्मगुरु ने व्याख्या की कि

‘ओम’ का कोई रंग-रूप नहीं था। वह एक ‘हवा’
थी। जिसे आप ‘हवा’ मानते हैं, वही हमारे लिए ‘अल्लाह’ है।


तमाम मुसलमानों को ‘हिंदू’ ही मानने वालों का विचार ‘जाहिल’ है। बहरहाल 21वीं सदी में धर्म और
भगवान या अल्लाह की ऐसी स्थापनाएं हास्यास्पद लगती हैं। कोई विधर्मी, धूर्त और अज्ञानी व्यक्ति


ही ऐसी व्याख्याएं कर सकता है या किसी के विचार को ‘जाहिल’ करार देते हुए गाली दे सकता है।
मुसलमानों के सबसे पुराने और व्यापक मज़हबी और सामाजिक संगठन ‘जमीयत उलेमा-ए-हिंद’ के


मंच से वयोवृद्ध मौलाना अरशद मदनी ने धर्म और परमात्मा संबंधी ऐसी व्याख्याएं कर साबित
करने की कोशिश की है

कि भारत ‘धर्मनिरपेक्ष देश’ नहीं है। बेशक संविधान में धार्मिक और पूजा-पाठ
पद्धति की आज़ादी का अधिकार दिया गया है,

लेकिन दूसरे के धर्म और आस्थाओं को गाली देने
और उसे अधम करार देने का अलिखित अधिकार भी दिया गया है।

बुनियादी तौर पर भारत को
मुसलमानों का वतन कहा गया है।


इस्लाम और मुसलमान भारत की ही पैदाइश हैं, वे कहीं बाहर से नहीं आए, ये स्थापनाएं भी दी गई
हैं। जमीयत का यह आम आयोजन ‘सर्वधर्म समभाव और सौहाद्र्र’ की सार्वजनिक सोच के तहत


किया गया था, लेकिन वह आडंबर और मुखौटा ही थे, नतीजतन जैन मुनि, सिख धर्मगुरु और अन्य
को मंच छोड़ कर जाना पड़ा। स्पष्ट कर दें कि हम न तो धर्मगुरु हैं और न ही धर्मों के विशेषज्ञ हैं,


लेकिन जितना भी अध्ययन किया है, उसके मुताबिक इन व्याख्याओं को खंडित किया जा सकता है।
मौलाना मदनी ने विश्व के सनातन धर्म को खारिज किया है

, जिसके कालखंड में वेदों, पुराणों और
उपनिषदों के दर्शन दुनिया के सामने आए।


मौलाना ने ब्रह्मा, विष्णु, महेश सरीखे ब्रह्मांड के ‘दैवीय त्रिदेवों’ और विष्णु-अवतार प्रभु श्रीराम के
अस्तित्व को ही नकारा है, लिहाजा एक बहुसंख्यक मानवीय आबादी की धार्मिक आस्थाओं को कुचला


गया है। जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव जी का नाम ही नहीं लिया गया, जिनके सुपुत्र भरत के
नाम पर देश का नामकरण ‘भारत’ किया गया था।

उनका कालखंड ही करीब 3000 साल पुराना है।
‘त्रिदेव’ तो ब्रह्मांड के ‘आदि रचयिता’ हैं, लिहाजा उनके कालखंड की तो कल्पना की जा सकती है,


व्याख्या असंभव है। अध्यात्म और आस्था तर्कों के आधार पर तय नहीं किए जा सकते। फिर इस्लाम
धर्म तो 1600 वर्ष पुराना ही है, तो उसे दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म कैसे माना और कहा जा


सकता है? मौलाना भी धर्म के विशेषज्ञ नहीं हैं। अलबत्ता वह किसी भी मकसद और मंसूबों के तहत

मुसलमानों को भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं। मौलाना अरशद इस्लाम के कुछ जानकार हो
सकते हैं, लेकिन सनातन धर्म को लेकर वह ‘शून्य’ हैं।