छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में बांधा समा
नई दिल्ली, 21 नवंबर (। राष्ट्रीय राजधानी के प्रगति मैदान में चल रहे 41वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में सोमवार को आयोजित सांस्कृतिक संध्या में छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों ने अपनी प्रस्तुति से समा बांधा और राज्य की लोक कला एवं संस्कृति की अनुपम छटा बिखेरी।
नई दिल्ली, 21 नवंबर । राष्ट्रीय राजधानी के प्रगति मैदान में चल रहे 41वें भारतीय
अंतरराष्ट्रीय व्यापार मेले में सोमवार को आयोजित सांस्कृतिक संध्या में छत्तीसगढ़ के लोक कलाकारों
ने अपनी प्रस्तुति से समा बांधा और राज्य की लोक कला एवं संस्कृति की अनुपम छटा बिखेरी।
छत्तीसगढ़ के खाद्य एवं संस्कृति मंत्री अमरजीत भगत ने कार्यक्रम का उदघाटन किया। श्री भगत ने
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा, “हमारी संस्कृति मिट जायेगी तो हमारी पहचान ही खत्म हो
जायेगी। इसलिए बदलते परिवेश व विषम परिस्थिति में भी अपनी संस्कृति को बचाकर रखना है।
इस तरह के आयोजन का अपनी संस्कृति एवं लोक कला के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान है।”
इससे पहले श्री भगत ने छत्तीसगढ़ पवेलियन का अवलोकन किया, जहां अलग-अलग स्टॉलों का
भ्रमण कर कलाकारों से जानकारी ली एवं उन्हें प्रोत्साहित किया। प्रगति मैदान के एम्फी थियेटर में
छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति एवं कला के बड़ी संख्या में लोग आज साक्षी बने। दर्शकों ने भी भरपूर
तालियां बजाकर कलाकारों का प्रोत्साहन किया। छत्तीसगढ़ से आये कलाकारों ने छत्तीसगढ़ में विभिन्न
उत्सवों, तीज त्योहारों पर किए जाने वाले नृत्यों की प्रस्तुति दी। श्री भगत भी खुद को रोक नहीं सके
और मंच पर पहुँच कर उन्होंने भी कलाकारों के साथ मांदर पर थाप दिया।
भिलाई से आए लोक रागनी दल के कलाकारों ने सबसे पहले देवी पूजन से नृत्य की शुरुआत की,
जिसमें देवी द्वारा राक्षस के नरसंहार को दिखाया गया। महिला कलाकारों द्वारा भोजली नृत्य के बाद
सुआ नृत्य के माध्यम से छत्तीसगढ़ की नृत्य कौशल को प्रस्तुत किया। सुआ नृत्य मूलतः महिलाओं
और किशोरियों का नृत्य है। इस नृत्य में महिलाओं ने एक टोकरी में सुआ (मिट्टी का बना तोता)
को रखकर उसके चारों ओर नृत्य किया और सुआ गीत गाया। हाथ और लकड़ी के टुकड़े से ताली
बजाई जाती है। इस नृत्य के समापन पर शिव गौरी विवाह का आयोजन किया गया। इसके बाद गेंडी
नृत्य की प्रस्तुति की गयी।
यह पुरुष प्रधान नृत्य है, जिसमें पुरुष तीव्र गति और कुशलता के साथ
गेड़ी पर शारीरिक संतुलन को बरकरार रखते हुए नृत्य करते हैं।
कलाकारों ने इस नृत्य के जरिए
शारीरिक कौशल और संतुलन का प्रदर्शन किया।
छत्तीसगढ़ के आदिवासीबहुल बस्तर से आये कलाकारों ने परब नृत्य की प्रस्तुति दी। यह नृत्य बस्तर
में निवास करने वाले धुरवा जनजाति के द्वारा किया जाता है। इस नृत्य को सैनिक नृत्य कहा जाता
है, क्योंकि नर्तक नृत्य के दौरान वीरता के प्रतीक चिन्ह कुल्हाड़ी और तलवार लिए होते हैं। इसके
साथ ही बस्तर के मारिया जनजाति के द्वारा जात्रा पर्व पर किए जाने वाला गौर नृत्य प्रस्तुत किया
गया। इस नृत्य में युवक सिर पर गौर के सिंह को कौड़ियों से सजाकर उसका मुकुट बनाकर पहनते
हैं। अतः इस नृत्य को गौर नित्य भी कहा जाता है।
इस नृत्य में केवल पुरुष भाग लेते हैं। महिलाओं
द्वारा केवल वाद्य यंत्र को बजाया जाता है जिसे तिर्तुडडी कहते हैं।
कलाकारों ने छत्तीसगढ़ का पारम्परिक नृत्य करमा की प्रस्तुति दी। इसे करमा देव को प्रसन्न करने
के लिए किया जाता है। इस नृत्य में पारंपरिक पोषक पहनकर लोग नृत्य करते है और छत्तीसगढ़ी
गीत गाते है। सबसे अंत में उपकार पंथी नृत्य दल के कलाकारों ने नृत्य के माध्यम से गुरु घासीदास
के संदेशों को लोगों तक पहुंचाया। यह नृत्य कई चरणों और पैटर्न का एक संयोजन है। यह नृत्य न
केवल इस क्षेत्र के लोक नृत्य के सबसे महत्वपूर्ण रूपों में से एक है, बल्कि इसे छत्तीसगढ़ के
सतनामी समुदाय का एक प्रमुख रिवाज या समारोह भी माना जाता है। इस अवसर पर संस्कृति
विभाग के संचालक विवेक आचार्य, उद्योग विभाग के विशेष सचिव हिमशिखर गुप्ता, संस्कृति
परिषद के योगेंद्र त्रिपाठी, खादी ग्रामोद्योग के अध्यक्ष राजेंद्र तिवारी, सीएसआईडीसी के प्रबंध
संचालक अरुण प्रसाद, लघु वनोपज संघ के प्रबंध संचालक श्याम सुंदर बजाज और आवासीय आयुक्त
अजीत वसंत भी मौजूद रहे।