जहाँ दर्शन से होता है सभी संकटों का नाश ऐसा है संकटमोचन मन्दिर का इतिहास
भगवान शिव के एकादशवे अवतार श्रीहनुमानजी महाराज हैं। भक्तगण बजरंगबली, अंजनी पुत्र, मारूतीनंदन सहित कई नामों से इनका पूजन करते है। हनुमानजी वानरों के राजा केसरीजी के सुपुत्र है। हनुमान जी की माता देवी अंजना है।
भगवान शिव के एकादशवे अवतार श्रीहनुमानजी महाराज हैं। भक्तगण बजरंगबली, अंजनी पुत्र, मारूतीनंदन सहित कई नामों से इनका पूजन करते है।
हनुमानजी वानरों के राजा केसरीजी के सुपुत्र है। हनुमान जी की माता देवी अंजना है। बाल्यकाल से ही हनुमानजी धर्म के रक्षक एवं अधर्म के नाशक रहे हैं। इन्हें चारों युगों में रहने का वरदान प्राप्त है। अमरत्व पाने वाले सात मनीषियों में हनुमानजी का भी नाम है। रामायण में बजरंगबली श्रीराम के अनन्य भक्त के रूप में है। प्रभु श्रीराम एवं रावणयुद्ध में हनुमान की भूमिका अग्रगण्य है। हनुमानजी की भक्ति का ही प्रताप है कि उनके हृदय में श्रीराम एवं माता सीता सदैव विराजती है।
प्रभु श्रीराम के आराध्य भगवान शिव है एवं भगवान शिव के आराध्य प्रभु श्री राम है। हनुमानजी एक तरफ स्वयं रुद्र के अवतार तो एक तरफ प्रभु राम के अनन्य सेवक है। हनुमानजी का सामना न कोई देवता न कोई राक्षस, न पशु न पक्षी, न यक्ष न गन्धर्व न किन्नर न मनुष्य अर्थात उनका सामना कोई नहीं कर सकता है। उनका तेज अतुलित एवं अतुल्य है।
बल, बुद्धि, विद्या के वह साक्षात करुणानिधान है। वे समस्त सिद्धि व निधि के प्रदाता है। इस कलि काल में जहाँ भी श्रीरामकथा, राम-नाम का भजन होता है भगवान हनुमान वहाँ किसी न किसी रूप में विद्यमान अवश्य रहते है।
भारतवर्ष में भगवान हनुमान के कई मन्दिर है। विदेशों में भी इनके मंदिर है। इनकी पूजा-अर्चना बड़े ही भक्ति-भाव से होती है। किसी मन्दिर में इनका बालस्वरूप तो कही रामसेवा में रत मूर्तियां स्थापित है। कही पर्वत उठाये तो कही कन्धे पर राम-लक्ष्मण बिठाये मूर्तियाँ स्थापित है। कहने का तात्पर्य है बाल्यकाल से लेकर अलग-अलग स्वरूपों की पूजा भक्त श्रद्धा व विश्वास से करते हैं। इन्हीं मन्दिरों में से एक बहुत प्रसिद्ध मंदिर है- संकटमोचन मन्दिर।
संकटमोचमन से तात्पर्य है - संकट का मोचन करने वाले अर्थात संकट का विनाश करने वाले। संकटमोचन मन्दिर उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित है। जो भी श्रद्धा भक्ति से यहाँ दर्शन प्राप्त करता है, हनुमानजी शीघ्र ही उनके सारे संकट का नाश कर सुख, शान्ति प्रदान करते हैं। जिस कामना से भक्त दरबार में आते वो यहाँ प्राप्त करते हैं।
संकटमोचन मन्दिर पहुँचने के लिए रेल मार्ग से वाराणसी रेलवे स्टेशन (वाराणसी कैन्ट) से पहुँचे। यहाँ से 24 घंटे मन्दिर के लिए टैक्सी, कैब आदि वाहन मिलते है। हवाई जहाज से आने के लिये बाबतपुर रेलवे स्टेशन उतरकर यहाँ मन्दिर के लिए टैक्सी, ऑटो, कैब से आया जा सकता है। वही बस स्टैंड से भी यहाँ पहुँचना सुगम है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, लंका से भी यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता हैं। इसके अलावा शहर के किसी भी रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड या किसी क्षेत्र से यहाँ आसानी से पहुँचा जा सकता है।
इस मन्दिर का इतिहास जानने के लिए हमें तुलसीदासजी पर ध्यान आकृष्ट करना होगा। तुलसीदासजी ने श्रीरामचरितमानस को अवधि भाषा में लिखा। मान्यतानुसार वर्तमान मन्दिर वाले स्थान पर ही तुलसीदास को हनुमानजी के दर्शन प्राप्त हुए थे। हनुमत कृपा से ही रामचरितमानस महाकाव्य की रचना तुलसीदासजी कर पाये।
प्रचलित कथानुसार तुलसीदासजी बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी के प्रवास पर थे। जिस क्षेत्र को आज अस्सी के नाम से जाना जाता है, वहाँ पहले सघन वन था और उसका नाम आनन्द-कानन वन था। उसी क्षेत्र में तुलिसदासजी रहने लगे थे। वो यहाँ प्रतिदिन गंगा स्नान के पश्चात अनायास ही एक सूखे बबूल के पेड़ की जड़ में एक लोटा जल डाल दिया करते थे। ऐसा नियमित होने से वह पेड़ धीरे-धीरे हरा होने लगा। प्रतिदिन की तरह जब एक दिन वे पेड़ के जड़ में जल डाले तभी उसमें से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई कुछ लोग उसे यक्ष तो कोई प्रेत कहता है।
उसने तुलसीदास जी से पूछा - क्या आप प्रभु श्रीराम से मिलना चाहेंगे ?
यह बात सुन तुलसीदासजी जी सोच में पड़ गये। वे कुछ उत्तर देते तब तक पुनः आवाज आयी- मैं आपको उनसे मिला सकता हूँ आपको राम से मिलने से पहले उनके प्रिय भक्त हनुमान से मिलना पड़ेगा। हनुमानजी आपको राम से मिला सकते है। इसके बाद उसी शक्ति ने तुलसीदास को बताया कि आप गंगा तट पर जाइये। उसी तट पर काशी के कर्णघंटा में राम का मंदिर है।जैसे ही आप राम मंदिर जायेंगे पास में ही एक कुष्ठ रोगी बैठा हुआ दिखेगा, वो कोई और नहीं वीर हनुमान जी ही है जो वेश बदलकर प्रभु राम के भक्ति में लीन है।
फिर क्या था तुलसीदास जी प्रसन्न हृदय से दिव्य शक्ति के बताये बातों के अनुसार हनुमानजी से मिलने निकल पड़े। मन्दिर पहुँचने पर उन्होंने भक्तों की भीड़ देखी। इस भीड़ में कुष्ठ रोगी को खोज पाना मुश्किल प्रतीत हो रहा था परंतु बड़ी देर की खोज के उपरान्त तुलसीदास जी उस रोगी के पास पहुँच गये। हनुमान जी उस भीड़ में रोगी वेश में सबसे आखिरी में बैठे थे। तुलसीदासजी जैसे ही उनके पास गये वह कुष्ठ रोगी वहाँ से चले गये। परंतु तुलसीदासजी भी अब कहा रुकने वाले थे आगे-आगे वह रोगी पीछे-पीछे तुलसीदासजी चल पड़े। ऐसे ही पीछा करते वो आनन्द-कानन वन चले गये। यहाँ तुलसीदास जी ने दौड़कर उस रोगी का पैर पकड़ लिया।
तुलसीदासजी बोले- हे प्रभु! मुझे ज्ञात है कि आप ही वीर हनुमान हैं। आप ही भक्तों के कष्ट मिटाने वाले है। श्रीराम की सेवा में रत रहने वाले कष्टभंजन करुणानिधान हे प्रभु मुझ दिन पर कृपा कर दर्शन दीजिये। बार-बार किये अनुरोध से प्रसन्न होकर अंततः हनुमान जी ने तुलसीदास जी को दर्शन दिए। तुलसीदास जी ने जगत कल्याण की इच्छा हेतु हनुमानजी से प्रार्थना किये। हे
करुणानिधान ! संसार के लोग संकटों से घिरे है। आप जैसा कौन है जो इस संसार के लोगों को संकटों से बचा सकता है। हनुमानजी कृपा कर आप यहाँ रह जाइये। इस प्रकार के बारम्बार अनुरोध के पश्चात हनुमानजी उनकी बात मान गये और वे उस क्षेत्र में मिट्टी का रूप धारण कर स्थापित हो गए। इसी के बाद रामचरित मानस की रचना बाबा तुलसीदास ने की। जब-जब तुलसीदास जी को कोई समस्या हुई या कोई संकट आया उन्होंने हनुमानजी से विनती की और सारे संकट नाश हो गये। इसी कारण इस मंदिर में विराजे हनुमान जी का नाम संकटमोचन पड़ा। इसके बाद तुलसीदासजी ने संकट मोचन हनुमान मंदिर का निर्माण कराया। बताया जाता है कि संवत 1631 और 1680 के बीच यह मंदिर बना था।
वर्तमान दृश्य होने वाले मन्दिर का निर्माण बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक पंडित मदन मोहन मालवीय ने सन 1900 के आस-पास करायी।
यह मंदिर लगभग 35,000 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। विशाल मंदिर में संकटमोचन हनुमान जी के दर्शन होते है। वे दाएं हाथ से भक्तों को अभयदान दे रहे हैं वही उनका बायाँ हाथ उनके ह्रदय पर स्थित है। हनुमान जी की मूर्ति के ठीक ऊपर प्रथम पूज्य श्रीगणेश भगवान की मूर्ति स्थापित है। मूर्ति के दाहिने तरफ एक छोटा सा शिवलिंग भी स्थापित है।
संकट मोचन हनुमान जी की मूर्ति के ठीक सामने एक मंदिर है जिसमें प्रभु श्री राम, लक्ष्मण एवं माता सीता विराजमान है। वही परिसर में एक कुंआ भी है जो तुलिसदासजी के समय का ही है। यहाँ आनेवाले श्रद्धालु इस कुएं का मीठा जल पीते है। आज वर्तमान संकट मोचन मंदिर के परिसर में जो पीपल का विशाल वृक्ष है, मान्यतानुसार उसी के नीचे बैठकर तुलसीदासजी ने रामचरितमानस का एक बड़ा हिस्सा लिखा है। मंदिर के ठीक पीछे हवन कुंड है जहां श्रद्धालु हवन इत्यादि कार्यक्रम करते हैं।
वर्तमान दृश्य मंदिर की स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय ने सन् 1900 में कराई, जिन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की स्थापना भी की है।
मंदिर प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में खुलता है। प्रातः चार बजे मंदिर खुलने के पश्चात ही श्री हनुमान चालीसा पाठ के साथ भव्य एवं दिव्य आरती होती है। दोपहर 12 बजे से 3 बजे तक भगवान के विश्राम के लिए मन्दिर का कपाट बन्द किया जाता है। संध्या आरती रात्रि 9 बजे की जाती है। आरती के दौरान पूरा मंदिर परिसर हनुमान चालीसा पाठ से गूंज उठता है। इसके कुछ देर बाद प्रभु के शयन हेतु पुनः कपाट बंद कर दिया जाता है।
प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु प्रभु का दर्शन करने देश-विदेश के कई हिस्सों से आते हैं परन्तु मंगलवार व शनिवार को विशेष भीड़ होता है।
इसके आलावा हनुमान जन्मोत्सव, रामनवमी जैसे पर्वो पर भीड़ ज्यादा बढ़ जाती है। प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को सूर्योदय के समय यहां हनुमान जी की विशेष आरती होती है। प्रसाद के रूप में यहाँ विशेष रूप से बेसन के लड्डू अर्पित किए जाते हैं ।
मन्दिर में प्रतिदिन श्रद्धालु रामचरितमानस, सुन्दरकाण्ड, हनुमान चालीसा, बजरंग-बाण आदि का पाठ श्रद्धा व विश्वास से करते हैं। यहाँ आनेवाला कभी भी कोई निराश नहीं लौटता बल्कि झोली भर के लौटता है।