जेल भेजती मधुशाला

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकले मनीष सिसोदिया को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार होना पड़ा है, यह एक गंभीर विरोधाभास है और तकलीफदेह भी है। यदि अन्ना हजारे उस दौर में भ्रष्टाचार के खिलाफ ‘महानायक’ की भूमिका में थे,

जेल भेजती मधुशाला

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकले मनीष सिसोदिया को भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार होना पड़ा
है, यह एक गंभीर विरोधाभास है

और तकलीफदेह भी है। यदि अन्ना हजारे उस दौर में भ्रष्टाचार के
खिलाफ ‘महानायक’ की भूमिका में थे, तो सिसोदिया भी अग्रिम पंक्ति के नायकों में एक थे। अरविंद


केजरीवाल के अंतरंग मित्र के तौर पर भी उनकी छवि अद्भुत थी। दोनों ने मिल कर ‘आम आदमी
पार्टी’ (आप) की राजनीति और रणनीति के रेशे बुने थे। एक ईमानदार और पारदर्शी राजनीति के दावे


किए गए थे। प्रशासन और सरकार में ‘लोकपाल’ की कल्पना की गई थी। ‘आप’ को उस दौर में
एकतरफा और ऐतिहासिक जनादेश मिला था, जब देश की राजनीति पर नरेंद्र मोदी का जादू छाया


था। मोदी देश के प्रधानमंत्री चुने गए थे। उनके अपशब्दीय विरोध के बावजूद दिल्ली विधानसभा के
70 में से 67 विधायक ‘आप’ के चुने गए। दिल्ली में बहुत कुछ स्वप्निल-सा लग रहा था। केजरीवाल


मुख्यमंत्री बने, तो सिसोदिया को उपमुख्यमंत्री बनाकर तमाम महत्वपूर्ण विभाग सौंपे गए। सिर्फ
आबकारी नीति ने ही मोहभंग की स्थितियां पैदा कर दीं। सिसोदिया भ्रष्ट हैं या उन्होंने शराब


माफिया से ‘मोटी दलाली’ ली है अथवा जांच एजेंसियों से बहुत कुछ छिपाया जा रहा है, हम इन
आरोपों की पुष्टि नहीं कर सकते।


आरोपों को सच्चाई के निष्कर्ष तक ले जाना भी सीबीआई का दायित्व है, जिसकी रिमांड पर
सिसोदिया हैं। अंतिम फैसला अदालत को सुनाना है, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन का एक


नायक गिरफ्तार है, यह फैसला और कारनामा एकांगी लगता है। यह शोर मचाना भी फिजूल है कि
प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा सिर्फ केजरीवाल से डरते हैं। आत्म-मुग्धता की यह राजनीति ठीक नहीं


है। फिलहाल मोदी और केजरीवाल की कोई राजनीतिक तुलना नहीं है। केजरीवाल देश के वैकल्पिक
प्रधानमंत्री होने से कोसों दूर हैं। ‘आप’ की सत्ता मात्र डेढ़ राज्यों में है। एक पंजाब और दूसरा


अद्र्धराज्य दिल्ली। यह मिथक भी कारगर साबित नहीं होगा कि प्रधानमंत्री मोदी बदले की राजनीति
के तहत ‘आप’ के नेताओं पर आपराधिक केस बनवा कर उन्हें जेलों में धकेल रहे हैं। यदि जनता


‘आप’ के ऐसे शोर पर गौर करती, तो दिल्ली और पंजाब में धमाकेदार जनादेश के बाद लोकसभा
चुनाव में भी ‘आप’ के सांसद चुनती, लेकिन संसदीय चुनाव में केजरीवाल को ‘शून्य’ समर्थन मिला।


जब देश के आधे राज्यों में ‘आप’ के सांसद चुने जाएंगे, तो केजरीवाल को गंभीर विकल्प माना जा
सकता है।