देश में सीओपीडी गैरसंचारी रोग से होने वाली मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण : डॉ. इन्द्र मोहन चुघ

जहां जीवनशैली में सुधार की अहम भूमिका होती है, वहीं इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना और इस पर काबू पाना भी बहुत जरूरी होता है, खासकर जब दिल्ली, एनसीआर में वायु गुणवत्ता

विश्व सीओपीडी दिवस 17 नवंबर 2021 
बढ़ते प्रदूषण के बीच सीओपीडी के मामले भी बढऩे लगे हैं, क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) की रोकथाम और प्रबंधन के लिए जहां जीवनशैली में सुधार की अहम भूमिका होती है, वहीं इस बीमारी के बारे में जागरूकता फैलाना और इस पर काबू पाना भी बहुत जरूरी होता है, खासकर जब दिल्ली, एनसीआर में वायु गुणवत्ता खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका हो। इसी को ध्यान में रखते हुए मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, शालीमार बाग ने इस बीमारी पर काबू पाने से संबंधित उपायों के प्रति लोगों को शिक्षित करने के लिए जागरूकता सत्र का आयोजन किया। मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग में पल्मोनोलॉजी एंड स्लीप मेडिसिन के वरिष्ठ निदेशक डॉ. इन्द्र मोहन चुघ का कहना है कि सीओपीडी फेफड़े से जुड़ी एक सामान्य, साध्य और उपचार योग्य बीमारी है, लेकिन देश में यह गैरसंचारी रोग से होने वाली मृत्यु का यह दूसरा सबसे बड़ा कारण है। वायु प्रदूषण के कारण सांस संबंधी तकलीफों के साथ ही लोगों के संपूर्ण स्वास्थ्य पर गहरा संकट मंडरा रहा है, खासकर क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी रोग (सीओपीडी) के मामले भी बढऩे लगे हैं। हर साल इस मौसम में दिल्ली और एनसीआर खराब हवा और प्रदूषण की चपेट में आ जाता है जिससे हम सबके लिए जीवन मुश्किल हो जाता है। कोविड महामारी के संदर्भ में भी मौत का प्रमुख कारण सीओपीडी ही रहा, लिहाजा हमारे लिए अपने फेफड़ों की सेहत पर ध्यान देने से ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं है। फेफड़ों की स्थिति के बारे में आम लोगों के बीच जागरूकता बढ़ाने के मकसद से हर साल 17 नवंबर को विश्व सीओपीडी दिवस मनाया जाता है। इस साल के थीम श्स्वस्थ फेफ ड़े इससे ज्यादा महत्वपूर्ण कुछ नहीं का उद्देश्य इस बात पर जोर देना है कि कोविड काल में भी सीओपीडी की अनदेखी नहीं होनी चाहिए। नॉन इनवेसिव वेंटिलेशन (एनआईवी) जैसी हालिया तकनीकी तरक्की से सीओपीडी के प्रबंधन में जबरदस्त बदलाव आया है और इसके मरीजों को बेहतर तथा संवर्धित जीवन गुणवत्ता मिली है।
डॉ. इन्द्र मोहन चुघ का कहना है कि एनआईवी में सांस की सामान्य प्रक्रिया पर निर्भर रहने के बजाय मास्क जैसा डिवाइस नाक के ऊपर लगाया जाता है जिससे पर्याप्त ऑक्सीजन सप्लाई सुनिश्चित करते हुए मरीज को सांस लेने की सुविधा दी जाती है। सीओपीडी से जुड़ी समस्याएं आम तौर पर आधी उम्र के बाद लक्षण के रूप में उत्पन्न होती हैं जिसमें पीडि़त सांस लेने में दिक्कत, सांस फूलना या सांस नहीं ले पाने की दिक्कत महसूस करता है और इससे लगातार कफ  की शिकायत और थकान भी महसूस होती रहती है। अब पुराने दिन नहीं रहे जब अस्पतालों में वेंटिलेटर इस्तेमाल होते थे। अब तो मरीजों की सुविधा के लिए कस्टमाइज्ड मास्क उपलब्ध हैं। यदि यह डिवाइस शुरुआती चरण में ही लगा दिया जाता है तो सीओपीडी से पीडि़त मरीज को न सिर्फ अच्छी राहत मिलती है, बल्कि उसके जीवन की गुणवत्ता भी सुधर जाती है।
ये लक्षण समय के साथ सिगरेट या बीड़ी पीने या परोक्ष धूम्रपान करने, धूल, धुआं या किसी अन्य जहरीले केमिकल के संपर्क में आने जैसे पर्यावरण प्रदूषण की चपेट में आने के कारण बढ़ते जाते हैं। जिन्हें पहले से फेफड़े संबंधी शिकायतें हैं, उन्हें प्रदूषक तत्वों में संपर्क में आने के कारण अस्थमा या सीओपीडी अटैक का खतरा ज्यादा रहता है। डॉ. इन्द्र मोहन चुघ का कहना है कि वहीं, बाहर काम करने वाले या व्यायाम करने वाले स्वस्थ व्यक्ति भी वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से ऐसे लक्षण महसूस करने लग जाते हैं। वायु प्रदूषण की समस्या पिछले एक दशक से आश्चर्यजनक रूप से बढ़ी है जिस कारण भारत में पिछले एक दशक के दौरान सीओपीडी से जुड़ी बीमारियों के मामले 100 फीसदी तक बढ़ गए हैं। इस वजह से हर साल 13 फीसदी यानी 10 लाख मरीजों की मौत हो रही है। सीओपीडी के प्रबंधन और रोकथाम के उपायों में अच्छी और प्रभावी जीवनशैली अपनाना, खराब वायु गुणवत्ता या प्रदूषित वायु वाले क्षेत्रों में जाने से बचना, खतरनाक धुआं और रसायन की चपेट में आने से बचना है ताकि बीमारी के लक्षण और न बढ़े। धूम्रपान करने वालों में फेफड़ों की सेहत जल्दी खराब होने की ज्यादा आशंका रहते हैं और उन्हें सीओपीडी का बड़ा खतरा रहता है। लिहाजा धूम्रपान का त्याग करना इस बीमारी से बचने का सर्वश्रेष्ठ तरीका है।