छोटे शहरो से सीखे तो साफ हो जाएगी दिल्ली जानें कैसे इंदौर से लेकर देहरादून बने मिसाल
किसी भी शहर की बेहतर साफ-सफाई वहां की आबादी पर निर्भर करती है। इसलिए स्वच्छता सर्वे में टॉप पर रहने वाले शहर हमेशा अव्वल आ रहे हैं। इसके पीछे एक ही बड़ी वजह है

छोटे शहरो से सीखे तो साफ हो जाएगी दिल्ली जानें कैसे इंदौर से लेकर देहरादून बने मिसाल
नई दिल्ली। किसी भी शहर की बेहतर साफ-सफाई वहां की आबादी पर निर्भर करती है। इसलिए स्वच्छता सर्वे में टॉप पर रहने वाले शहर हमेशा अव्वल आ रहे हैं। इसके पीछे एक ही बड़ी वजह है वहां की कम आबादी। दिल्ली जैसे बड़े शहर में जहां लगभग तीन करोड़ लोग रहते हैं, वहां छोटे शहरों जैसी साफ सफाई हो पाना संभव ही नहीं है।
एक्सपर्ट का कहना है कि एमसीडी सहित जिन एजेंसियों के कंधों पर दिल्ली को साफ और स्वच्छ शहर बनाने का जिम्मा है, वे हमेशा इसी तरह के बहाने बनाकर अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़कर दूर खड़े नजर आते हैं। सच यह है कि दिल्ली में अभी तक उस तरह के ठोस प्रयास ही नहीं किए गए। ज्यादातर योजनाएं कागजों में तैयार हुईं और इसके बाद फाइलों में गुम होकर रह गईं। एक्सपर्ट का कहना है कि अब आकर अलग-अलग एजेंसियों के दबाव में दिल्ली से निकलने वाले कूड़े को प्रोसेस करने के लिए जो कदम उठाए जा रहे हैं, उनका परिणाम अगले कुछ साल में नजर आएगा।
एक्सपर्ट ने इंदौर शहर का उदाहरण देते हुए कहा कि भले ही इस शहर की आबादी 20 लाख (2011 की जनगणना के अनुसार) के करीब है। यही वह शहर है, जो साल 2015 तक देश के सबसे स्वच्छ शहरों की लिस्ट में 149वें नंबर पर आता था। बड़ा सवाल यह है कि इंदौर ने ऐसा क्या किया, जिसकी वजह से पिछले सात साल से वह देश के सबसे साफ और स्वच्छ शहरों में टॉप पर बना हुआ है। इंदौर ने ऐसा क्या कर दिया जो अब तक दिल्ली या दूसरे शहर नहीं कर पाए। इंदौर का स्लोगन है, श्जब पूरा शहर सो रहा होता है, वहां तब भी सफाई चल रही होती है।
इंदौर ने सबसे पहले 70 साल पुराने कूड़े के पहाड़ को खत्म करके वहां 550 टन कूड़े को प्रोसेस करने के लिए प्लांट लगाया। इस प्लांट पर कूड़े से हर दिन 19 टन ब्छळ तैयार की जा रही है। कूड़े से तैयार हुई ब्छळ से ही शहर की 400 से अधिक बसें सड़कों पर दौड़ रही है। वहां के सफाई मित्र वास्तव में डोर टु डोर कूड़े का कलेक्शन करने के बाद उसे प्लांट पर लेकर जाते। वहां गीला और सूखा कूड़ा अलग-अलग किया जाता है। इसके बाद कूड़े को अलग-अलग प्लांटों पर ठिकाने लगाने के लिए भेजा जाता है। इंदौर शहर में किसी भी सड़क पर कहीं पर भी चिप्स का खाली पैकेट और प्लास्टिक बैग नजर नहीं आएगा।
इतना ही नहीं, सड़कों पर कहीं पर भी आवारा जानवर घूमते नहीं मिलेंगे। सब्जी मंडी में ही अलग-अलग डस्टबिन रखे होते हैं। इससे गीले और सूखे कूड़े को अलग-अलग डाला जा सके। एक्सपर्ट का कहना है कि शहर को साफ रखने के चक्कर में ऐसा भी नहीं है कि इंदौर वासियों ने अपने त्योहार मनाने छोड़ दिए, बल्कि वहां त्योहार खत्म होते ही सड़कों और गलियों को इस तरह से साफ किया जाता है, जिससे पता ही नहीं चल पाता कि यहां कुछ हुआ भी था।
इंदौर में यह संभव हो पाया वहां की जनता, वहां की नगर निगम और सफाई मित्रों के सहयोग से। हर कोई अपनी जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी के साथ निभा रहा है। लोगों को यह बात याद रखनी होगी कि शहर को साफ और स्वच्छ बनाने की जिम्मेदारी अकेली सरकार की होती है, बल्कि यह हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी बनती है।
हर्रावाला देहरादून में लोगों के घरों से निकलने वाले कूड़े को ठिकाने लगाने के लिए वहां लगभग पांच टन की क्षमता वाले मटीरियल रिकवरी फैसिलिटी (एमआरएफ) सेंटर बनाए। इन सेंटरों पर कूड़े से रिसाइकल होने वाले कूड़े की छंटाई की जाती है। एक्सपर्ट का कहना है कि देहरादून के हर्रावाला जैसे छोटे से इलाके में इस फॉर्म्यूले को अपना जा सकता है तो दिल्ली नगर निगम इसे द्ल्लिी में समय से क्यों लागू नहीं कर पाई? अब आकर डब्क् की नींद टूटी और दिल्ली में एमआरएफ सेंटर लगाने के लिए अलग-अलग साइटों का सर्वे किया गया है।
सर्वे में जितनी भी जगह चिह्नित की जाएगी, उनमें से करीब 15 जगहों पर सेंटर लगाए जाएंगे। इससे सोर्स पर ही कूड़े का निपटारा किया जा सके। अगले कुछ महीनों में इन सेंटरों के परिणाम देखने को मिलेंगे।