मैसूर के कृष्ण कुमार अपनी मां को स्कूटर से दुनिया दिखाने निकले मातृ सेवा संकल्प यात्रा
टूटी हुई मोबाइल स्क्रीन, दो हेलमेट, बैग में कुछ जरूरी सामान, दो बोतल पानी और एक छाता लेकर केए-09 एक्स 6143 नंबर की 25 साल पुरानी बजाज चेतक स्कूटर से कृष्ण अपनी मां को दुनिया दिखाने निकले हैं।
टूटी हुई मोबाइल स्क्रीन, दो हेलमेट, बैग में कुछ जरूरी सामान, दो बोतल पानी और एक छाता लेकर केए-09 एक्स 6143 नंबर की 25 साल पुरानी बजाज चेतक स्कूटर से कृष्ण अपनी मां को दुनिया दिखाने निकले हैं। इस यात्रा को उन्होंने मातृ सेवा संकल्प
यात्रा नाम दिया है। जिसके तहत अभी तक वह 66 हजार 889 किमी. की दूरी तय कर तीन देशों की यात्रा पूरी कर चुके हैं।
कभी कृष्ण ने बाललीला के दौरान मुंह में मां यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन कराए थे। अब मैसूर के कृष्ण कुमार अपनी मां को स्कूटर से दुनिया दिखाने निकले हैं।
उनकी मातृ सेवा संकल्प यात्रा का पड़ाव संगमनगरी में पड़ा है। यहां आकर उन्होंने मां को संगम स्नान कराने के बाद यहां के मंदिरों के दर्शन कराए।
44 वर्षीय कृष्ण कुमार अपनी 74 वर्ष की मां चूड़ा रत्नम्मा को लेकर मुठ्ठीगंज स्थित रामकृष्ण मिशन आश्रम में रुके हुए हैं।
पेशे से कंप्यूटर इंजीनियर रहे कृष्ण कुमार ने शादी नहीं की। अपने बारे में उन्होंने बताया कि कर्नाटक के मैसूर में उनकी मां ने ताउम्र संयुक्त परिवार की सेवा में बिता दी।
वन विभाग में कार्यरत रहे पिता दक्षिणामूर्ति की 2015 में मृत्यु हुई तो बंगलौर में रह रहे कृष्ण कुमार उन्हें अपने पास ले आए। शाम
को ऑफिस से लौटकर दोनो मां-बेटे आपस में बात करते तो एक दिन मां ने बताया कि उन्होंने घर के बाहर कभी कोई स्थान नहीं देखा।
जिस पर उन्हें लगा जिस मां ने उन्हें पूरी दुनिया देखने के काबिल बनाया, घर के हर शख्स को बनाने के लिए अपना पूरा जीवन खपा दिया। अब वह मां को दुनिया दर्शन कराएंगे।
लिहाजा वर्ष 2016 में उन्होंने नौकरी छोड़कर यात्रा शुरु कर दी। इस यात्रा में उन्होंने पिता के स्कूटर को हमसफर बनाया, ताकि पिता की याद भी बनी रहे।
इसी स्कूटर से वह नेपाल, भूटान, म्यांमार देशों की यात्रा मां के साथ कर चुके हैं और अब कश्मीर से कन्याकुमारी तक पूरे दर्शन पर निकले हैं।
लॉकडाउन में भूटान सीमा पर फंसे रहे
अनुभव साझा करते हुए
कृष्ण कुमार ने बताया लॉकडाउन के दौरान वह मां के साथ यात्रा पर थे। भूटान सीमा पहुंचे तो पता चला सीमाएं सील हैं। कोरोना के उस दौर में एक माह 22 दिन उन्होंने भारत-भूटान सीमा के जंगलों में गुजारे। इसके बाद जब उनका पास बना तो एक सप्ताह में
2673 किलोमीटर स्कूटर चलाकर वापस मैसूर आ गए। सब कुछ सामान्य होने के बाद 15 अगस्त 2022 से उन्होंने दोबारा यात्रा शुरु की है।
व्यक्ति के न रह जाने पर इज्जत देने का क्या मतलब
यात्रा के पीछे की प्रेरणा के बारे में वह बताते हैं कि जब लोग दुनिया से अंतिम विदा ले लेते हैं तो उनकी फोटो पर माला चढ़ाकर मृतक की इच्छाओं के बारे में बाते करते हैं,
उन्हें याद करते हैं। जबकि रिश्तों को, व्यक्तियों का खयाल जीते जी रखना चाहिए। मैं यह मलाल लेकर नहीं जीना चाहता था।
इसलिए पिता के गुजर जाने के बाद मां को अकेला छोड़ने की बजाय उन्हें दुनिया दिखाने का निर्णय किया और यात्रा पर निकल पड़े।