गुलाबी नगरी कह रही आपसे पधारो म्हारै देस

जयपुर जिसे हम राजायों की नगरी और पिंक सिटी के नाम से जानते हैं। पिंक सिटी जयपुर का नाम सुनते हमारे दिमाग में रेगिस्तान, और महल की छवि विकृत होने लगती है। जयपुर राजस्थान की राजधानी है जोकि एक अर्द्ध रेगिस्तान क्षेत्र में स्थित है।

गुलाबी नगरी कह रही आपसे पधारो म्हारै देस

जयपुर जिसे हम राजायों की नगरी और पिंक सिटी के नाम से जानते हैं। पिंक सिटी जयपुर का नाम सुनते हमारे
दिमाग में रेगिस्तान, और महल की छवि विकृत होने लगती है। जयपुर राजस्थान की राजधानी है जोकि एक अर्द्ध


रेगिस्तान क्षेत्र में स्थित है। इस खूबसूरत से शहर को आमेर के राजा महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने बंगाल
के एक वास्तुषकार विद्याधर भट्टाचार्य की सहायता से इसका निर्माण करवाया था। जयपुर भारत का पहला शहर
है जिसे वास्तुनशास्तर्् के अनुसार निर्मित किया गया था।


अगर जयपुर को राजाओं की नगरी कहा जाये तो गलत नहीं होगा। सरकार ने इन राजाओं की हवेलियों को आज
भी सरंक्षित करके रखा हुआ।

जिसे देखने हर साल लाखों की तादाद में विदेशी और भारतीय सैलानी आते हैं। दूर-
दराज के क्षेत्रों के लोग यहां अपनी ऐतिहासिक विरासत की गवाह बनी इस समृद्ध संस्कृरति और पंरपरा को देखने


आते है। अगर आप जयपुर घूमने आ रहें हैं तो इन राजसी किलों को देखना तो बिल्कुल ही भूले। अम्बेंर किला,


नाहरगढ़ किला, हवा महल, शीश महल, गणेश पोल और जल महल, जयपुर के लोकप्रिय पर्यटक स्थेलों में से हैं।
जयपुर सिर्फ पर्यटकों का ही नहीं बल्कि हिंदी सिनेमा की भी पहली पसंद बनता जा रहा है।


जल महल:- जल महल जोकि जयपुर शहर के बीचोंबीच स्थित है। इस महल का निर्माण राजा सवाई जयसिंह ने
अश्वमेध यज्ञ के बाद अपनी रानियों और पंडित के साथ स्नातन के लिए करवाया था। इसके साथ ही वह यंहा


अपने खली वक्त में अपनी रानियों क साथ भर्मण के लिए भी आते थे। हालंकि अब यह महल पक्षी अभयारण के
रूप में विकसित हो गया है। यंहा ढाई से तीन हजार प्रवासी पक्षी आते हैं।

इसके साथ ही यंहा राजस्थान की सबसे
बड़ी नर्सरी भी है जन्हा 1 लाख से अधिक वृक्ष लगे हैं।


आम्बेर किला:- आमेर किला जयपुर नगर सीमा के पास ही बसा हुआ छोटा सा कस्बा है। इस कस्बे को मीणा राजा
आलन सिंह ने बसाया था। आमेर नगरी राजपुतयों की नगरी हैं क्योकि इस नगरी को राजपूतों ने आलं सिंह से


जीत लिया था। आपको बता दे, अकबर की जोधा भी इसी आमेर की राजकुमारी थीं। आमेर नगरी और वहां के
मंदिर तथा किले राजपूती कला का अद्वितीय उदाहरण है। आमेर का प्रसिद्ध दुर्ग आज भी ऐतिहासिक फिल्मों के


निर्माताओं को शूटिंग के लिए आमंत्रित करता है। मुख्य द्वार गणेश पोल कहलाता है, जिसकी नक्काशी अत्यन्त
आकर्षक है। आमेर में ही है चालीस खम्बों वाला वह शीश महल, जहां माचिस की तीली जलाने पर सारे महल में


दीपावलियां आलोकित हो उठती है। हाथी की सवारी यहां के विशेष आकर्षण है, जो देशी सैलानियों से अधिक विदेशी
पर्यटकों के लिए कौतूहल और आनंद का विषय है।


शीश महल:- आमेर के किले के बाद बारी आती है शीश महल की। जोकि अपने आप में ही बेहद रोमांचक है।
इसकी भीतरी दीवारों, गुम्बदों और छतों पर शीशे के टुकड़े इस प्रकार जड़े गए हैं कि केवल एक माचिस की तीली


जलाते ही शीशों का प्रतिबिम्ब पूरे कमरे को प्रकाश से रोशन कर देता है। शीश महल के अलावा यहां का विशेष
आकर्षण है डोली महल, जिसका आकार उस डोली (पालकी) की तरह है, जिनमें प्राचीन काल में राजपूती महिलाएं


आया-जाया करती थीं। इन्हीं महलों में प्रवेश द्वार के अन्दर डोली महल से पूर्व एक भूल-भूलैया है, जहां राजे-
महाराजे अपनी रानियों और पट्टरानियों के साथ आंख-मिचैनी का खेल खेला करते थे। कहते हैं महाराजा मान सिंह


की कई रानियां थीं और जब राजा मान सिंह युद्ध से वापस लौटकर आते थे तो यह स्थिति होती थी कि वह किस
रानी को सबसे पहले मिलने जाएं। इसलिए जब भी कोई ऐसा मौका आता था तो राजा मान सिंह इस भूल-भूलैया में


इधर-उधर घूमते थे और जो रानी सबसे पहले ढूंढ़ लेती थी उसे ही प्रथम मिलन का सुख प्राप्त होता था।

नाहरगढ़ किला:- अगर शीश महल और आमेर किला देखकर आपका जी ना भरा तो थोड़ा सा बढ़ कर एक बार
नाहरगढ़ किला जरूर देखिएगा। इस किले पर खड़े होकर आप पूरे जयपुर की खूबसूरती को एकटक निहार सकते हैं


और किले की प्राचीर दीवार पर खड़े होकर इस शहर को निहारना, बारिश के मौसम में बादलों का आपको छूकर
निकलना, ऐसी खूबसूरती जिसको बयान करना नामुमकिन है। यह किला तो बहुत पुराना है पर सैलानियों की नजरों


में फिल्म रंग दे बसंती की शूटिंग के बाद चढ़ा। इस फिल्म के बाद यह जगह सैलानियों और यंगस्टर्स के लिए
खास हैंगआउट जोन के रुप में उभरा है।


हवा महल:- हवा महल जोकि राजस्थान की राजधानी जयपुर में सैलानियों के आकर्षण का मुख्य केन्द्रों में से एक
है। यह महल शहर के बीचों-बीच स्थित है इस भव्य भवन का निर्माण 1799 में महाराजा सवाई प्रताप सिंह ने


अपनी रानियों के लिए करवाया था। इस महल में बाहर की ओर बेहद खूबसूरत और आकर्षक छोटी-छोटी जालीदार
खिड़कियां हैं, जिन्हें झरोखा कहते हैं। इन झरोखों को इसलिए बनवाया गया था ताकि उनकी रानियां पर किसी की


निगाह ना पड़े और वे इन खिडकियों से महल के नीचे सडकों के समारोह व गलियारों में होने वाली रोजमर्रा की
जिंदगी की गतिविधियों का अवलोकन कर सकें। इसकी प्रत्येक छोटी खिड़की पर बलुआ पत्थर की बेहद आकर्षक


और खूबसूरत नक्काशीदार जालियां, कंगूरे और गुम्बद बने हुए हैं। यह बेजोड़ संरचना अपने आ

प में अनेकों अर्द्ध
अष्टभुजाकार झरोखों को समेटे हुए है, जो इसे दुनिया भर में बेमिसाल बनाते हैं।


खान-पान:- ये बात तो हो गयी महलों की अब बात करते हैं यंहा के खान-पान की। बात जयपुरी खाने की हो और
जयपुरी गट्टा और घेवर न हो तो बेकार है। अगर आप जयपुर घूम कर थक गए है गट्टे की सब्जी पूरी के साथ


ट्राई करना बिल्कुल ना भूले। इसके अलावा दाल बाटी-चूरमा, प्याज की कचैड़ी, कबाब, मुर्ग को खाटो और अचारी
मुर्ग यहां के प्रसिद्ध व्यं जन है। खानें के शौकीन इन सब खानों का लुत्फ नेहरू बाजार और जौहरी बाजार में


जाकर उठा सकतें हैं। मिठाईयों के शौकीन हैं तो घेवर का एक पीस जरूर चखें। जयपुरी घेवर के अलावा के यंहा की
मिश्री मावा और मावा कचैड़ी देश भर में काफी लोकप्रिय हैं।