Delhi अंतरराष्ट्रीय किडनी गिरोह का पर्दाफाश

दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने बड़ी कार्रवाई करते हुए भारत व बांग्लादेश में चल रहे अंतरराष्ट्रीय किडनी गिरोह का पर्दाफाश किया है। पुलिस ने चार बांग्लादेशियों समेत सात को गिरफ्तार किया है

Delhi अंतरराष्ट्रीय किडनी गिरोह का पर्दाफाश

Delhi अंतरराष्ट्रीय किडनी गिरोह का पर्दाफाश 

New delhi :- दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने बड़ी कार्रवाई करते हुए भारत व बांग्लादेश में चल रहे अंतरराष्ट्रीय किडनी गिरोह का पर्दाफाश किया है। पुलिस ने चार बांग्लादेशियों समेत सात को गिरफ्तार किया है, जबकि तीन मरीजों को बाउन-डाउन किया गया है। किडनी डोनर व प्राप्तकर्ता दोनों की बांग्लादेशी होते थे और नोएडा व दिल्ली के अस्पतालों में गैरकानूनी रूप से प्रत्यारोपण किया जाता था। आरोपी डोनर को साढ़े तीन लाख रुपये देते थे और प्राप्तकर्ता से 20 से 22 लाख रुपये लेते थे। बताया जा रहा है कि किडनी रैकेट तीन वर्ष से ज्यादा समय से चल रहा था। 


अपराध शाखा के पुलिस उपायुक्त अमित गोयल ने बताया कि इंस्पेक्टर कमल शर्मा की टीम को 16 जून को सूचना मिली कि एक संगठित अपराध गिरोह के लोग गैरकानूनी रूप से किडनी प्रत्यारोपण का धंधा कर रहे हैं। एसीपी रमेश लांबा की देखरेख में इंस्पेक्टर कमल कुमार एवं सत्येंद्र मोहन, एसआई गुलाब सिंह, आशीष शर्मा, समय सिंह, एएसआई शैलेंद्र सिंह, राकेश कुमार और जफरुद्दीन की टीम ने जांच शुरू की। टीम ने जसोला गांव में घेराबंदी कर चार आरोपी बांग्लादेशी रसेल, रोकोन, सुमन मियां और त्रिपुरा निवासी रतेश पाल को गिरफ्तार कर लिया। उनकी निशानदेही पर तीन प्राप्तकर्ता और तीन डोनर की पहचान की गई। अपराध शाखा ने मामला दर्जकर सभी छह आरोपियों को गिरफ्तार किया गया।

आरोपियों ने पूछताछ के दौरान बताया कि गिरोह के सदस्य बांग्लादेश में डायलिसिस केंद्रों पर जाकर किडनी की बीमारी से पीड़ितों को निशाना बनाते थे। ये किडनी डोनर भी बांग्लादेश में ही ढूंढते थे। डोनर को भारत लाया जाता था और फिर पासपोर्ट जब्त कर उन्हें किडनी देने के लिए मजबूर किया जाता था। इसके बाद आरोपी रसेल और इफ्ति अपने सहयोगियों मोहम्मद सुमन मियां, मोहम्मद रोकन उर्फ राहुल सरकार और रतेश पाल के माध्यम से प्राप्तकर्ताओं/डोनर के बीच संबंध दिखाने के लिए जाली दस्तावेज तैयार करते थे। जाली दस्तावेज के आधार पर अस्पतालों से प्रारंभिक चिकित्सा जांच कराते थे। इसके बाद दिल्ली व नोएडा के अस्पतालों में किडनी ट्रांसप्लांट करवाते थे।


जांच के दौरान यह पाया गया कि डॉ. डी. विजया राजकुमारी का निजी सहायक विक्रम सिंह रोगियों की फाइलें तैयार करने में सहायता करता थे और रोगी और डोनर का हलफनामा तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था। विक्रम सिंह आरोपियों से प्रति मरीज 20000 लेता था। रसेल ने अपने एक सहयोगी के रूप में मोहम्मद शारिक का नाम भी बताया। मोहम्मद शारिक डॉ. डी. विजया राजकुमारी से मरीजों का अपॉइंटमेंट लेता था और पैथोलॉजिकल टेस्ट करवाता था और डॉक्टर की टीम से संपर्क करता था। मोहम्मद शारिक प्रति मरीज 5000 से 60000 लेता था। दो आरोपी व्यक्तियों विक्रम सिंह और मोहम्मद शारिक को 23 जून को गिरफ्तार कर लिया।

गिरफ्तार आरोपियों रसेल अहमद, विक्रम सिंह और शारिक ने खुलासा किया कि डॉ. डी. विजया राजकुमारी को इन लोगों द्वारा जाली कागजात के आधार पर किए जा रहे प्रत्येक अवैध कार्य के बारे में पूरी जानकारी थी। तदनुसार, एक जुलाई को डॉ. राजकुमारी को भी वर्तमान मामले में गिरफ्तार किया गया। रैकेट द्वारा किए गए प्रत्यारोपणों की संख्या की पहचान करने के लिए जांच जारी है।

रसेल- मूलरूप से बांग्लादेश निवासी रसेल 2019 में भारत आया और एक बांग्लादेशी मरीज को अपनी किडनी दान की थी। किडनी देने के बाद उसने यह रैकेट शुरू किया। वह इस रैकेट का किंगपिन है और विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वय करता है। उसने बांग्लादेश के संभावित किडनी दाताओं और किडनी प्राप्तकर्ताओं के बीच संपर्क स्थापित किया। वह बांग्लादेश में रहने वाले इफ्ति नामक व्यक्ति से डोनर मंगवाता था। प्रत्यारोपण पूरा होने पर उसे आमतौर पर इस कंपनी से 20-25 फीसदी तक कमीशन मिलता है।


मोहम्मद सुमन मियां- मूलरूप से बांग्लादेश निवासी आरोपी मोहम्मद सुमन, आरोपी रसेल का साला है और वर्ष 2024 में भारत आया था। तब से वह रसेल के साथ उसकी अवैध गतिविधि में शामिल है। वह किडनी रोगियों की पैथोलॉजिकल जांच का काम देखता है। रसेल उसे प्रत्येक मरीज/दाता के लिए 20,000 का भुगतान करता था। मोहम्मद रोकोन उर्फ राहुल सरकार उर्फ बिजय मंडल- बांग्लादेश निवासी मोहम्मद रसेल के निर्देश पर किडनी दानकर्ताओं और किडनी प्राप्तकर्ताओं के फर्जी दस्तावेज तैयार करता था। रसेल उसे प्रत्येक मरीज/दाता के लिए 30,000 का भुगतान करता था। उसने 2019 में एक बांग्लादेशी नागरिक को अपनी किडनी भी दान की थी।

रतेश पाल - त्रिपुरा निवासी रतेश को रसेल उसे प्रत्येक मरीज/दाता के लिए 20,000 का भुगतान करता था।

शरीक- वह बीएससी मेडिकल लैब टेक्नीशियन तक पढ़ा है और यूपी का रहने वाला है। वह मरीजों और दाताओं की प्रत्यारोपण फाइलों की प्रोसेसिंग के संबंध में निजी सहायक विक्रम और डॉ. विजया राजकुमारी के साथ समन्वय करता था।

विक्रम- उत्तराखंड का रहने वाला का रहने वाला विक्रम वर्तमान में वह फरीदाबाद, हरियाणा में रहता है। आरोपी डॉ. डी. विजया राजकुमारी का सहायक है।

डॉ. विजया राजकुमारी किडनी सर्जन और दो अस्पतालों में विजिटिंग कंसल्टेंट हैं। फिलहाल उसे अपोलो अस्पताल से निलंबित किया हुआ है। तीन आरोपी मरीज हैं। इस कारण उन्हें गिरफ्तार करने की बजाय बाउन-डाउन किया गया है।

अलग-अलग प्रमुखों यानी डॉक्टर, नोटरी पब्लिक, एडवोकेट आदि की 23 मोहरें, किडनी मरीजों और दाताओं की छह जाली फाइलें, अस्पतालों के जाली दस्तावेज, जाली आधार कार्ड, जाली स्टिकर, खाली स्टाम्प पेपर, पेन ड्राइव, हार्ड डिस्क, दो लैपटॉप जिसमें आपत्तिजनक डेटा है, आठ मोबाइल फोन और 1800 यूएस डॉलर बरामद किए गए हैं।