दिल्ली में एक दिन की बारिश ने क्यों मचाई तबाही

मानसून की सामान्य से अधिक वर्षा मौसम विज्ञानियों को भी हैरान परेशान कर रही है। वह मानसून की अतिवृष्टि को सीधे सीधे ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देख रहे हैं।

दिल्ली में एक दिन की बारिश ने क्यों मचाई तबाही

दिल्ली में एक दिन की बारिश ने क्यों मचाई तबाही

मानसून की सामान्य से अधिक वर्षा मौसम विज्ञानियों को भी हैरान परेशान कर रही है। वह मानसून की अतिवृष्टि को सीधे सीधे ग्लोबल वार्मिंग एवं जलवायु परिवर्तन से जोड़कर देख रहे हैं। मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के सहयोगी भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान संस्थान, (आइआइटीएम) पुणे भी इसके प्रभाव से सहमत है। संस्थान के जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र का आंकलन है कि पंजाब हो या हिमाचल, एनसीआर हो या उत्तराखंड, सभी जगहों पर एक या दो दिन में ही एक या कई महीने जितनी बरसात हो रही है

तो यह जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट संकेत है। संस्थान के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ राक्सी मैथ्यू कोल कहते हैं, ग्लोबल वार्मिंग के कारण हवा में नमी अब अधिक रहने लगी है।

महासागर भी गर्म हैं। दक्षिण -पश्चिम मानसून अपने साथ अतिरिक्त नमी ला रहा है। एक अन्य अहम पहलू यह कि बढ़ते तापमान के साथ, हवा में नमी धारण करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। चूंकि गर्म हवा लंबे समय तक नमी को धारण नहीं रख सकती, ऐसे में जब भी वर्षा होती है तो सारी नमी कुछ घंटों या कुछ दिनों के अंतराल में बरस जाती है। यही वजह है कि इतने कम समय में इतनी भारी बरसात हो रही है। रॉक्सी के मुताबिक मानसून के पैटर्न में बहुत ही स्पष्ट बदलाव है। एनसीआर सहित देश भर में लंबे समय से मानसून के मौसम में वर्षा वाले दिनों की संख्या घट रही है। कुछ ही दिनों में रुक-रुक कर भारी से अत्यंत भारी वर्षा हो जाती है। यह पैटर्न बीते कुछ वर्षों से लगातार मजबूत हो रहा है।

केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव माधवन नायर राजीवन भी स्वीकार करते हैं कि इस अतिवृष्टि सहित अन्य चरम मौसमी घटनाएं जलवायु परिवर्तन, बढ़ते तापमान एवं ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से जुड़ी हैं। इसकी बारंबारता आने वाले दिनों में और बढ़ने वाली है। नेशनल सेंटर फॉर एटमास्फेरिक साइंस एंड डिपार्टमेंट ऑफ मीट्रियोलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग, यूके के वरिष्ठ विज्ञानी डॉअक्षय देवरस भी कमोबेश ऐसी ही राय रखते हैं। बकौल देवरस, जलवायु विसंगतियों के प्रभाव से प्रतिकूल मौसम की ऐसी परिस्थितियां बढ़ रही हैं।

हम इसका व्यापक असर दिल्ली में भी देख रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन और तीव्र होगा, बाढ़, लू और चक्रवात जैसी चरम घटनाएं और गंभीर हो जाएंगी। इन घटनाओं से बढ़ते जोखिमों से निपटने के लिए तत्काल जलवायु कार्रवाई, अनुकूलन उपाय और वैश्विक ग्रीनहाउस गैस कटौती पर सहयोग आवश्यक है। जलवायु परिवर्तन का ही असर कहेंगे कि एक दिन पहले तक जून की वर्षा माइनस में चल रही थी जबकि 24 घंटे की रिकार्ड वर्षा के बाद चार महीने की मानसून अवधि की कुल वर्षा का भी 36 प्रतिशत कोटा पूरा हो गया है।

मालूम हो कि जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर में लगभग 640 मिमी वर्षा होती है। जबकि 28 जून तक ही यह 234.5 मि मी यानी दर्ज की जा चुकी है।