कानूनी सख्ती के बावजूद क्यों पनप रही है बाल-तस्करी
देश की राजधानी दिल्ली में तमाम जांच एजेंसियों की नाक के नीचे नवजात बच्चों की खरीद-फरोश्त की मंडी चल रही थी जहां दूधमुंहे एवं मासूम बच्चों को खरीदने-बेचने का धंधा चल रहा था।
देश की राजधानी दिल्ली में तमाम जांच एजेंसियों की नाक के नीचे नवजात बच्चों की खरीद-फरोश्त की
मंडी चल रही थी
जहां दूधमुंहे एवं मासूम बच्चों को खरीदने-बेचने का धंधा चल रहा था। दिल्ली की
‘बच्चा मंडी’ के शर्मनाक एवं खौफनाक घटनाक्रम का पर्दापाश होना, अमानवीतया एवं संवेदनहीनता की
चरम पराकाष्ठा है।
जिसने अनेक ज्वलंत सवालों को खड़ा किया है। आखिर मनुष्य क्यों बन रहा है
इतना क्रूर, अनैतिक एवं अमानवीय? सचमुच पैसे का नशा जब, जहां, जिसके भी सर चढ़ता है वह
इंसान शैतान बन जाता है।
दिल्ली के केशवपुरम इलाके में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने छापेमारी
कर ऐसे ही शैतानों के कुकृत्यों का भंडाफोड किया और एक महिला समेत सात लोगों को रंगेहाथ
गिरफ्तार किया, इसके साथ ही तीन नवजात शिशुओं को उनके चंगुल से बचाया। आरोपियों में एक
अस्सिटेंट लेबर कमिश्नर को इस धंधे का मास्टर माइंड माना जा रहा है। न केवल दिल्ली वालों के लिए
बल्कि देशवासियों के लिए यह खबर चिंता पैदा करने वाली ही नहीं है, बल्कि खौफ पैदा करने वाली भी
है।
दिल दहाले देने वाली इस घटना में सीबीआई की अब तक की जांच से पता चला है कि आरोपी फेसबुक
पेज और व्हाट्सएप ग्रुप जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर विज्ञापन के माध्यम से बच्चे गोद लेने के
इच्छुक निसंतान दंपतियों से जुड़ते थे।
आरोपी कथित तौर पर वास्तविक माता-पिता के साथ-साथ
सेरोगेट माताओं से भी नवजात बच्चे खरीदते थे। इन नवजात बच्चों को चार से छह लाख रुपए में बेच
दिया जाता था।
जांच से जुड़े सीबीआई अधिकारियों के अनुसार एजेंसी की गिरफ्त में आए आरोपी बच्चों
को गोद लेने से संबंधित फर्जी दस्तावेज तैयार कराते थे। आरोपी कई निसंतान दंपतियों से लाखों रुपए
की ठगी करने में भी संलिप्त हैं। इस गिरोह के तार कहां-कहां हैं इसकी भी कड़ियां जोड़ी जा रही हैं। यह
गिरोह आईवीएफ के माध्यम से युवतियों को गर्भधारण कराता था फिर इन शिशुओं को बेचता था। गरीब
माता-पिता से भी बच्चे खरीदे जाते थे। बच्चों की खरीद-फरोख्त और बच्चों की तस्करी एक ऐसी समस्या
है जिस पर तभी ध्यान जाता है जब कोई सनसनीखेज खबर सामने आती है।
अर्थ की अंधी दौड़ में इंसान कितने क्रूर एवं अमानवीय घटनाओं को अंजाम देने लगा है कि चेहरे ही नहीं
चरित्र तक अपनी पहचान खोने लगे हैं। नीति एवं निष्ठा के केन्द्र बदलने लगे हैं। मानवीयता एवं
नैतिकता की नींव कमजोर होने लगी है। आदमी इतना खुदगर्ज बन जाता है कि उसकी सारी संवेदनाएं
सूख जाती है।
बाल तस्करी के खिलाफ कई सख्त कानूनी प्रावधानों के बावजूद भारत में यह समस्या
नासूर बनती जा रही है। नवजात बच्चे चुराने वाले गिरोह के पर्दाफाश से फिर यह तथ्य उभरा है कि
बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करने वालों में कानून का कोई खौफ नहीं है। बच्चों की तस्करी पर भारी
जुर्माने के साथ उम्रकैद तक का प्रावधान होने के बावजूद यह कड़वी हकीकत है कि ऐसे दस फीसदी से
भी कम मामले दोषियों को सजा तक पहुंच पाते हैं।
मुकदमों की पैरवी सही तरीके से नहीं होने के कारण
अपराधी बच निकलते हैं और वे फिर बाल तस्करी एवं बच्चों की खरीद-फरोश्त में लिप्त हो जाते हैं।