डॉ.सत्या सिंह की पुस्तकों में है जीवन का सत्य
अवध भारती संस्था द्वारा हिन्दी संस्थान में आयोजित किया गया विमोचन समारोह
लखनऊ । अवध भारती संस्था द्वारा गुरुवार 8 फरवरी को पुस्तक विमोचन समारोह का आयोजन उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान के निराला सभागार में किया गया। उसमें पूर्व पुलिस अधिकारी, समाज सेविका और साहित्यकार डॉ.सत्या सिंह की सद्यः प्रकाशित पांच पुस्तक - “मैं हूँ ना”, “दम तोड़ते सपनों का शहर कोटा”, “अनाम पातियाँ”, “महाभारत की प्रबुद्ध महिलाएं” और “भारतीय कानून में महिलाओं के अधिकार” का लोकार्पण वरिष्ठ साहित्यकारों द्वारा किया गया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ में प्रधान संपादक के पद पर कार्यरत हैं. डॉ.अमिता दुबे के संचालन में वरिष्ठ साहित्यकार और लखनऊ विश्वविद्यालय के हिन्दी एवं आधुनिक भाषा के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो.सूर्यप्रसाद दीक्षित ने समारोह की अध्यक्षता की।
इस अवसर पर विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ.राम बहादुर मिश्र ने कहा कि सेवानिवृत्ति के पश्चात छह वर्षों में सत्या सिंह ने बीस पुस्तकों का सृजन किया जिसमें जनसरोकार और विषय वैविध्य दिखता है। प्रकाशित कृति “मैं हूं ना” पर अपने विचार व्यक्त करते हुए साहित्यकार अरुण सिंह ने कहा कि इस पुस्तक के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि संतुलित जीवन के लिए सकारात्मकता के साथ-साथ क्रोध, भय और तनाव पर नियंत्रण की भी आवश्यकता होती है। रवीन्द्र प्रभात ने कहा कि “अनाम पातियाँ” काव्य संग्रह, सत्या सिंह के जीवन अनुभवों पर आधारित है जो भोगे हुए यथार्थ का सजीव चित्रण करती हैं।
विधिविद् और साहित्यकार महेन्द्र भीष्म ने ‘भारतीय कानून में महिलाओं के अधिकार” पुस्तक के संदर्भ में कहा कि इसमें सुलभ सरल भाषा में गागर में सागर को समेटा गया है। यह पुस्तक देश के कानून के साथ साथ पुलिस की कार्यशैली और उनके व्यवहार दायित्व से भी परिचय कराती है।
वरिष्ठ साहित्यकार दयानन्द पाण्डेय ने ‘दम तोड़ते सपनों का शहर कोटा’ पुस्तक के संदर्भ में कहा कि कोटा इंजीनियरिंग और मेडिकल कोचिंग का हब बन चुका है। कोचिंग संस्थानों द्वारा अभिभावकों का अंधाधुंध आर्थिक शोषण किया जा रहा है। उनके अनुसार इस पुस्तक में बच्चों द्वारा आत्महत्या करने की महामारी के कारणों को भी बारीकी के साथ उजागर किया गया है।
वरिष्ठ कवि सर्वेश अस्थाना ने डॉ.सत्या सिंह के साहित्यिक अवदान की चर्चा करते हुए कहा कि सत्या सिंह ने कविता, कहानी, निबंध और सामाजिक विसंगतियों पर बहुत ही प्रभावशाली ढंग से लिखा है। डॉ.मिथिलेश दीक्षित ने सत्या सिंह के दो हाइकु काव्य संग्रह की भी प्रशंसा की।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो.सूर्यप्रसाद दीक्षित ने पुस्तक ‘महाभारत की प्रबुद्ध महिलाएं’ के आधार पर वैदिक कालीन और महाभारत कालीन नारियों की विद्वत्ता और उनकी सामाजिक संस्कृति पर विस्तार पूर्वक चर्चा की। इसके अतिरिक्त डॉ.विनोद चन्द्रा और डॉ.मिथिलेश दीक्षित ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अंत में सभी आगंतुकों के प्रति डॉ. सत्या सिंह ने आभार प्रदर्शन किया।