बाबरी विध्वंस के आरोपियों को बरी करने के निर्णय को चुनौती देगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

अयोध्या (उत्तर प्रदेश), 07 दिसंबर । ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले के आरोपियों को बरी किए जाने के विशेष सीबीआई अदालत के आदेश को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगा।

बाबरी विध्वंस के आरोपियों को बरी करने के निर्णय को चुनौती देगा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

अयोध्या (उत्तर प्रदेश), 07 दिसंबर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बाबरी मस्जिद
विध्वंस मामले के आरोपियों को बरी किए जाने के विशेष सीबीआई अदालत के आदेश को उच्चतम


न्यायालय में चुनौती देगा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल में अयोध्या के निवासियों हाजी महबूब


और सैयद अखलाक द्वारा बाबरी विध्वंस मामले में सीबीआई अदालत के फैसले के पुनरीक्षण की
याचिका खारिज कर दी थी।


बोर्ड के कार्यकारिणी सदस्य एवं प्रवक्ता सैयद कासिम रसूल इलियास ने बुधवार को बताया कि बोर्ड
ने बाबरी विध्वंस मामले में विशेष सीबीआई अदालत द्वारा सभी आरोपियों को बरी किए जाने के


फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने का निर्णय किया है।

उन्होंने कहा, ‘‘हम निश्चित रूप से
उच्चतम न्यायालय जाएंगे क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय ने खुद यह स्वीकार किया था

कि बाबरी
मस्जिद का विध्वंस एक आपराधिक कृत्य था।’’


उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की पीठ ने राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद
मामले में नौ नवंबर 2019 को दिए गए ऐतिहासिक निर्णय में कहा था कि बाबरी मस्जिद को ढहाया


जाना कानून का गंभीर उल्लंघन था। इस मामले के सभी आरोपी अब भी कानून की पकड़ से बाहर
हैं।’’


इलियास ने कहा कि उच्च न्यायालय ने जिन हाजी महबूब और सैयद अखलाक की पुनरीक्षण
याचिका खारिज की है वे दोनों ही अयोध्या के निवासी हैं।

वे इस मामले में सीबीआई अदालत में
गवाह थे और छह दिसंबर 1992 को अभियुक्तों द्वारा जमा की गई भीड़ ने उनके घरों पर भी हमला


किया था। वे दोनों बाबरी मस्जिद के नजदीक में ही रहते हैं।


गौरतलब है कि विशेष सीबीआई अदालत ने 30 सितंबर 2020 को बाबरी विध्वंस मामले में पूर्व उप


प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, भारतीय जनता


पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता विनय कटियार और साध्वी ऋतंभरा समेत सभी 32 अभियुक्तों को
बरी कर दिया था।


उसके बाद महबूब और अखलाक ने आठ जनवरी 2021 को सीबीआई अदालत के इस निर्णय के
पुनरीक्षण के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। इस साल नौ नवंबर को न्यायालय ने


उनकी यह अर्जी खारिज करते हुए कहा था कि दोनों याचिकाकर्ता बाबरी विध्वंस मामले के पीड़ित
नहीं हैं।