मंदिर मंदिर द्वारे द्वारे
लोग धार्मिक स्थलों पर क्यों जाते हैं? हालांकि मैं यहां दो हिंदू मंदिरों पर स्वयं के भ्रमण के दौरान हुए अनुभव साझा करूंगा। दिल्ली के जमना बाजार स्थित मरघट वाले बालाजी मंदिर में वह महिला खड़े होकर कुछ जाप कर रही थी।
लोग धार्मिक स्थलों पर क्यों जाते हैं? हालांकि मैं यहां दो हिंदू मंदिरों पर स्वयं के भ्रमण के दौरान हुए अनुभव साझा करूंगा। दिल्ली के जमना बाजार स्थित मरघट वाले बालाजी मंदिर में वह महिला खड़े होकर कुछ जाप कर रही थी।
अपनी आस्था के चलते यहां मैं अक्सर जाता रहता हूं।कोरोना काल के बाद से मंदिर में अंदर बैठकर जाप करने की सुविधा बंद कर दी गई है। लोग दो तीन पंक्तियों में चलते चलते हनुमानजी के दरबार के सामने से गुजरते जाते हैं और उसी समय दर्शन लाभ प्राप्त
करते हैं। लोग उन्हें कुछ क्षण निहारना चाहते हैं, उनके समक्ष अपनी पीड़ा व्यक्त करना और उसके समाधान की गुहार लगाना चाहते हैं।परंतु मंदिर के सेवक या उन्हें स्वामी ही कहिए,
पंक्तिबद्ध होकर चलते जा रहे लोगों को भी टिटकारते (आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना) रहते हैं। यदि कोई भक्त उनके टिटकारने की उपेक्षा कर क्षणांश भी वहां रुकना चाहे तो उनमें से कई एक साथ बोल पड़ते हैं,- क्या हनुमानजी को साथ ले जाएगा।' इसलिए
वह महिला मंदिर परिसर में एक स्थान पर खड़ी होकर कुछ जाप कर रही थी।वह बहुत तेजी से जाप कर रही थी। यदि वहां मंदिर न होता और मुझे उस महिला को लेकर पूर्वानुमान न होता तो मैं यही समझता कि वह बादशाह या मिक्का सरीखे किसी गायक
जैसा रैप गा रही है। भक्ति के अनेक स्वरूप हैं और बिना कारण उसकी आलोचना नहीं की जानी चाहिए। मंदिर परिसर में अनगिनत भक्त आते हैं, वहां खान पान की बहुत सी दुकानें हैं और बहुतेरे मांगने वाले हैं।उन मांगने वालों में असहाय न के बराबर
होते हैं।जवान, हट्टे कट्टे,नशा करने वाले और स्वभाव से भिखारी ही अधिक होते हैं। उनपर दया और सहानुभूति क्यों करनी चाहिए? क्या अपने इहलोक और परलोक की सलामती के लिए ऐसे लोगों को दान देने का पुण्य मिलता है? मंदिर के बाहर मंगलवार और
शनिवार को अनेक लोग भंडारा करते हैं।भंडारा खाने वाले सभी लोग भूखे तो होते हैं परंतु जरूरतमंद बिल्कुल नहीं। रिक्शा, ऑटो चालक और वही स्वभावगत मुफ्त का खाने वाले।
अच्छा हो कि इस प्रकार खर्च किया जाने वाला धन निराश्रित बच्चों, महिलाओं, वृद्धों के पालन पोषण में तथा शिक्षा, चिकित्सा के क्षेत्र में लगाया जाए।
हालांकि इन क्षेत्रों में काम करने वाले अधिकांश गैर सरकारी संगठनों के संचालक मंदिर के इर्दगिर्द रहने वाले मुफ्तखोरों के भी वरिष्ठ हैं।