पंजाब का धुआं अब दिल्ली की हवा बिगाड़ पाएगा?

भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर जरूर है, लेकिन पर्यावरण की सुरक्षा और प्रदूषण के मामले में हालात संतोषजनक नहीं हैं। हालत यह है कि धरती के जिन सौ स्थानों को सर्वाधिक प्रदूषित पाया गया है

पंजाब का धुआं अब दिल्ली की हवा बिगाड़ पाएगा?

भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर जरूर है, लेकिन पर्यावरण की सुरक्षा और प्रदूषण के मामले में हालात संतोषजनक नहीं हैं।

हालत यह है कि धरती के जिन सौ स्थानों को सर्वाधिक प्रदूषित पाया गया है, उनमें हमारे देश के 63 शहर न सिर्फ शामिल हैं बल्कि कुछ तो इस मामले में टॉप पर हैं। इनमें दिल्ली कैसे पीछे छूट सकती है

, जोकि लगातार चार वर्षों से दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित राजधानी बनी हुई है। दिल्ली में गत वर्ष की तुलना में प्रदूषण 15 गुना बढ़ा है। रिपोर्ट बताती है कि वायु प्रदूषण के क्षेत्र में उत्तर भारत की हालत बदतर है।

 दिल्ली का वायु प्रदूषण दुनिया में चौथे स्थान पर है, जबकि सबसे प्रदूषित शहर राजस्थान का भिवाड़ी है।

इसके बाद दिल्ली से सटा शहर यूपी का गाजियाबाद है। देश के दस सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में दस दिल्ली के आसपास हैं, जिनमें आधे हरियाणा और उत्तर प्रदेश में हैं।

 

रिपोर्ट कहती है कि धान के खेतों में जलाई जाने वाली पराली दिल्ली में 45 प्रतिशत प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। अब जबकि पंजाब और दिल्ली दोनों जगह आम आदमी पार्टी की सरकारें हैं तो पराली का धुआं दिल्ली जाएगा या नहीं

, यह आने वाली सर्दियों में पता चलेगा। स्विटजरलैंड की एक फर्म आईक्यूएयर की विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के मुताबिक, भारत का कोई भी शहर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के हवा की क्वालिटी के पैमाने

पर खरा नहीं उतरा है। हमारे यहां हवा की क्वालिटी खराब करने में मोटर वाहनों, कोयला चालित बिजलीघरों और कारखानों से निकले धुएं का रोल सबसे ज्यादा है।

यह सिर्फ आंकड़ों की बात नहीं है, बल्कि इस स्थिति का सीधा असर देशवासियों के स्वास्थ्य पर पड़ रहा है। वायु प्रदूषण दिल और फेफड़ों की कई बीमारियों का कारण बनता है, जिनके इलाज के लिए देश को भारी भरकम राशि खर्च करनी पड़ती है।

भारत के लिए यह रकम 150 अरब डॉलर से अधिक होने का अनुमान है। आईक्यूएयर इस सूची को तैयार करने के लिए सरकारी एजेंसियों से जारी होने वाले आंकड़ों का प्रयोग करती है।

 

यह भी कहा जाता है कि हवाई यातायात से बहुत अधिक प्रदेषण होता है। हालांकि, सारा दोष बेचारे ट्रकों के मत्थे मढ़ दिया जाता है। सभी महत्वपूर्ण लोगों को विमानों से ही आना जाना होता है, इसलिए शायद ही कोई एजेंसी या देश हवाई जहाजों पर पाबंदी लगाने की बात सोचेगा। कोविड से पहले घरेलू उड़ानों का जो स्तर था, लगभग वही स्तर कोविड के बाद अब आ चुका है। केंद्रीय नागरिक उड्‌डयन मंत्री ज्योतिर्यादित्य सिंधिया ने संसद में बताया कि बीते दिसंबर में प्रतिदिन 3.8 लाख यात्रियों ने हवाई जहाजों से यात्रा की, जबकि कोविड से पहले हर रोज 4 लाख लोग विमानों से जाते थे। यानी देश की सिविल एविएशन इंडस्ट्री तेजी से पुराने स्तर पर लौटने लगी है। साथ ही, 27 मार्च से 100 प्रतिशत क्षमता के साथ अंतर्राष्ट्रीय उड़ानें भी शुरू होने वाली हैं। देश में कोविड के मामले आने शुरू ही हुए थे, तब 23 मार्च 2020 को अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को एक सप्ताह के लिए रोक दिया गया था, जो बाद में दो वर्षों तक लागू रहा। हालांकि, जुलाई 2020 में 37 देशों के साथ एयर बबल व्यवस्था के साथ सीमित संख्या में उड़ानें जाती रहीं। 

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