राहुल गांधी की पप्पूगीरी और कांग्रेस का भविष्य
'भारत जोड़ो' यात्रा से जो कुछ राहुल गांधी ने कमाया था, उसे उन्होंने अपने दो बार के विदेश के दौरों पर जाकर देश के विरोध में दिए गए अपने बयानों से गंवा भी दिया है। भारतीय राजनीति में इस समय नकारात्मकता का प्रतीक बनकर तेजी से उभरे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी पैरों पर अपने आप कुल्हाड़ी मारने के लिए मशहूर हो चुके हैं
'भारत जोड़ो' यात्रा से जो कुछ राहुल गांधी ने कमाया था, उसे उन्होंने अपने दो बार के विदेश के दौरों पर जाकर देश के विरोध में दिए गए अपने बयानों से गंवा भी दिया है।
भारतीय राजनीति में इस समय नकारात्मकता का प्रतीक बनकर तेजी से उभरे कांग्रेस के नेता राहुल गांधी पैरों पर अपने आप कुल्हाड़ी मारने के लिए मशहूर हो चुके हैं।
पहले दिन से इन्होंने जिस प्रकार की नकारात्मक राजनीति की है उससे इनका स्वयं का और इनके राजनीतिक दल कांग्रेस का बहुत भारी अनिष्ट हो चुका है।
अभी तक 55 चुनाव हार चुके राहुल गांधी किसी भी चुनाव से शिक्षा नहीं ले पाए। पूर्णतया चाटुकार लोगों से घिरे रहने राहुल गांधी हर बार कुछ ऐसा बोल जाते हैं जो देश की प्रतिष्ठा पर चोट मारने वाला होता है।
इससे उनके विरोधियों को और विशेष रूप से भाजपा को बहुत अधिक राजनीतिक लाभ मिलता है। पिछले दिनों मैं जब ललितपुर प्रवास पर था तो वहां एक भाजपा नेता मुझसे कह रहे थे
कि राहुल गांधी का एक स्टेटमेंट हमें हमारे फोटो में 50,000 की वृद्धि करवा जाता है।
इसे हम इस प्रकार भी समझ सकते हैं कि राहुल गांधी के ऐसे बोल प्रतिदिन कांग्रेस के समर्थकों की संख्या घटाते जा रहे हैं।
उनकी पप्पूगीरी को देखने व सुनने के लिए लोग एकत्र हो जाते हैं
और वह उत्साह में पहले से भी बड़ी गलती कर जाते हैं। लोग उन पर मजे लेते हुए ताली बजाते हैं और इन तालियों को वे सही संदर्भ में न लेकर इस प्रकार लेते हैं जैसे उनकी पप्पूगीरी की राजनीति ही उनका स्वयं का और देश का कल्याण कर सकती है।
राहुल गांधी देश की जनता को भ्रमित करने की सोचते हैं और देश की जनता उन पर ( उनके लिए नहीं ) ताली बजाकर स्वयं उन्हें भ्रमित कर देती है। राहुल गांधी के पप्पूगीरी वाले बयानों को उनकी पार्टी के नेता उनको शेर कहकर महिमामंडित करते हैं। जिससे
भी उनसे बराबर गलती होते रहने की संभावनाएं बनी रहती है। कोई उन्हें समझाने का साहस नहीं कर पाता। निश्चय ही राहुल को अपनी पसंद की सर्वे एजेंसियों से अपने बोलने से देश के जनमानस में हुई प्रतिक्रिया का अनुमान लगाना चाहिए।
अब कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने अमेरिका के सेंफ्रांसिस्को में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी जी को सबके बारे में सब कुछ पता है।
मोदी जी भगवान को भी ब्रह्मांड के बारे में समझा सकते हैं।
उन्होंने नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह के बारे में सीधे तो कुछ नहीं कहा परंतु इतना अवश्य कहा कि बेरोजगारी, महंगाई, नफरत फैलाना भारतीय जनता पार्टी की कार्यप्रणाली का एक अभिन्न अंग है।
राहुल गांधी भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के प्रधानमंत्री पद के भावी प्रत्याशी हैं। उनसे अपेक्षा की जाती है कि वह आज भी वैसा ही आचरण करें जिससे देश की जनता को यह आभास हो कि वह स्वयं भी देश चलाने में सक्रिय भूमिका निभा
रहे हैं। कोई भी राजनीतिक दल सत्ता से बाहर रहकर यदि आग लगाने की बात करेगा या लोगों के बीच बनी सामाजिक समरसता को भंग करने के वक्तव्य दे देकर अपनी प्रसिद्धि प्राप्त करना चाहेगा तो इससे देश का भला होने वाला नहीं है।
राहुल गांधी को देश के प्रधानमंत्री की आलोचना करने का पूर्ण अधिकार है , इसके अतिरिक्त भारतीय जनता पार्टी की नीतियों की आलोचना करना भी उनका विशेष अधिकार है।
परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि वे पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा की आलोचना करते करते कुछ ऐसा बोल दें जो देशविरोधी हो तथा अमर्यादित और राजनीतिक शिष्टाचार के विरुद्ध हो। राजनीति में शिष्टाचार और शिष्टाचार के साथ राजनीति जब की जाती है तो
उससे लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा तो होती ही है साथ ही देश का राजनीतिक और सामाजिक परिवेश भी पवित्र बनता है। राहुल गांधी के साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि उनके चाटुकार लोग उन्हें जो कुछ समझा देते हैं उसे वे बिना सोचे समझे बोल जाते हैं।
देश में यदि देश विरोधी तत्वों, असामाजिक लोगों और राष्ट्रद्रोह की गतिविधियों में संलिप्त संगठनों के विरुद्ध कठोरता का प्रदर्शन किया जा रहा है तो इसे राहुल गांधी को सही संदर्भ में लेना चाहिए।
उनके लिए यह इसलिए भी आवश्यक है कि अंततः देश में शांति पूर्ण सामाजिक व्यवस्था स्थापित करना प्रत्येक राजनीतिक दल का प्राथमिक और सर्वोच्च कर्तव्य है। ऐसा व्यक्ति चाहे सत्ता पक्ष में बैठा हो ,चाहे विपक्ष में बैठा हो उसके लिए राष्ट्र सर्वोपरि है। सत्ता
किसी की बपौती नहीं है और ना ही देश में इस समय राजतंत्र है, जिसमें सत्ता को अपनी चेरी मानकर शासक लोग प्रयोग किया करते थे। समय बदल चुका है और अब नेहरू इंदिरा का काल भी बहुत पीछे चला गया है। नए संदर्भ और नई परिस्थितियों में
राहुल गांधी को नई कांग्रेस का गठन करना चाहिए। भारत और भारतीयता से विरोध करने या भारत नाम के राष्ट्र की परिकल्पना
को वेदों के ऋषियों के द्वारा निर्मित न करने की गली सड़ी मानसिकता से बहुत आगे निकले हुए देश को यदि राहुल गांधी फिर पीछे धकेलना चाहते हैं तो इसके लिए देश का युवा कतई भी तैयार नहीं है।
यह देश यदि नरेंद्र मोदी की बपौती नहीं है तो यह राहुल गांधी की भी बपौती नहीं है। यह देश उन करोड़ों लोगों की बपौती है जो इसी के लिए जीते हैं ,इसके लिए ही सोचते हैं, इसके लिए ही मरते हैं।
जिनकी हर सांस में राष्ट्र बसा है। राष्ट्र की आत्मा के साथ जिनका सहकार है और राष्ट्र के अस्तित्व के साथ जिनका सरोकार है। अब इस देश का बच्चा- बच्चा इसके भले बुरे के बारे में सोच व समझ गया है। देश की जनता की आंखों में धूल झोंककर अपने
राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने वाले नेताओं को तो देश का जनमानस अच्छी प्रकार समझ गया है। ऐसे में राहुल गांधी को यानी समझना चाहिए कि वह नकारात्मकता की राजनीति करके देश के मतदाताओं को अपनी ओर ला सकते हैं। यह माना जा सकता है
कि सत्ता कल नरेंद्र मोदी के पास ना रहे, यह भी माना जा सकता है कि सत्ता कल को भाजपा के हाथों से भी चली जाएगी। परंतु इस सबका अर्थ यह नहीं है कि भारत के भविष्य की सारी संभावनाएं मिट जाएंगी।
उन परिस्थितियों में भी भारत के पास बेहतर विकल्प खोजने की अपनी इतिहास का क्षमताएं मौजूद रहेंगी। हम यह बात पूर्ण विश्वास के साथ कह सकते हैं
कि उन परिस्थितियों में भी देश के सम्मान को विदेश की भूमि पर ठेस पहुंचाने वाले लोगों को इस देश की आत्मा अपने लिए स्वीकार नहीं करेगी।
भारत के बाहर जिस प्रकार मुस्लिमों, दलितों, सिखों आदि पर अत्याचार की बात राहुल गांधी कर रहे हैं, उससे उनकी नकारात्मकता से भरी हुई मानसिकता का पता चलता है।
राहुल गांधी को यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि देश विरोधी लोगों का उचित उपचार करने के लिए ही सरकारों की स्थापना की जाती है।
देश में चाहे महिला सशक्तिकरण की बात हो ,चाहे एजेंसियों के दुरुपयोग की बात हो, चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कार्यप्रणाली की बात हो, इन सब पर सवाल उठाने और सरकार की आलोचना करने का अधिकार राहुल गांधी को है और इसके लिए सबसे
उपयुक्त मंच देश की संसद है। जिसमें बैठकर वह देश की व्यवस्था में आ रही खामियों को मजबूती से उठा सकते हैं। परंतु राहुल गांधी की समस्या यह है कि यह संसद से भागते हैं और इधर उधर से जाकर प्रधानमंत्री पर आक्रमण करते हैं। इस पलायनवादी
सोच से कोई व्यक्ति नेता नहीं बन सकता। विदेशों की भूमि को अपने देश के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए प्रयोग करने की राहुल गांधी की नीति स्वयं उनके लिए खतरनाक सिद्ध होगी।